“बेटी”

नील गगन को छूना चाहती हूँ,
आसमान में उड़ना चाहती हूँ,
माँ मुझे भी दुनिया में ले आ
मैं भी तो जीना चाहती हूँ ।

मुझे भी खूब पढ़ने दे माँ,
मैं आगे बढ़ना चाहती हूँ।

भ्रूण हत्या है एक महा पाप,
सबको समझाना चाहती हूँ।

सब कर सकती है बेटी भी,
जमाने को दिखाना चाहती हूँ।

माँ-बाप का नाम रौशन करके,
सबका भविष्य बनाना चाहती हूँ।

माँ तू बन जा सीढ़ी मेरी,
मैं चाँद पर जाना चाहती हूँ।

देश को गौरवान्वित कर,
मैं नाम कमाना चाहती हूँ।

 

हिन्दी कविता बेटी

( Hindi Kavita Beti ) 

बरसों पुराना सपना
साकार हुआ है,
मेरे घर बेटी का
अवतार हुआ है।

बेटियाँ सबके भाग्य
में कहाँ होती है,
जिनका भाग्य उदय
हो वहाँ होती है ।

एक भाग्य खुलने पर
जहाँ बेटा होता है,
वहीं सौभाग्य खुलने पर
बेटी होती है।

कुल का दीपक
जो होता है बेटा,
रोशनी कुल की
बेटी होती हैं ।

माँ की लाडली पिता
की दुलारी होती है,
बेटी तो सबको जान
से प्यारी होती है।

बेटा है पिता के बुढ़ापे
की लाठी,
माँ का सहारा हरदम
बेटी होती है ।

कहती है दुनिया बेटी को
पराया धन,
क्योंकि वह खुदा की
अमानत होती हैं ।

जिस घर में बेटी को
मान सम्मान मिलता है,
खुशियाँ उनकी सदा
सलामत होती हैं ।

जो देते हैं बेटी को
संस्कार की दौलत,
वह दो कुलों की
तारणहार होती है ।

जिनसे आती है हरदम
मायके में रौनक,
शादी के बाद ससुराल
की वो शान होती है ।

माँ को घर काम में
सहायक होती है,
पिता का बेटा
बन के दिखाती हैं ।

होती है भाई की
सच्ची सलाहकार,
अपने पति की
हमराज होती है।

बच्चों की खुशी के लिए
सब कुछ लुटाती है,
सचमुच बेटियाँ कितनी
महान होती है ।

जो बेटी को पढ़ाते हैं
पैरों पर खड़ा करते हैं,
वह अपने साथ देश का
भी उद्धार करते हैं ।

बेटे को पाने की लालसा में
जो बेटी को गवां देते हैं,
किस्मत भी उनसे नाराज होकर
उन्हीं पे सितम ढाती है!

अरे नयनों जो
बेटी को नहीं लाओगे
बेटी को नहीं बचाओगे
बेटों के लिए बहू
कहाँ से लाओगे
उनका घर क्या बसाओगे ।

उन्हीं के दुश्मन बनकर
उनका भविष्य डूबाओगे,
उनका भविष्य डूबाओगे।

 

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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