शकुन्तला | Shakuntala kavita
शकुन्तला ( Shakuntala kavita ) घटा घनघोर घन घन बरसे,दामिनी तडके है तड तड। धरा की प्यास मिटती, तन मे जगती प्यास है हर पल। मिले दो नयन नयनो से, मचल कर कामना भडके। लगे आरण्य उपवन सा,अनंग ने छल लिया जैसे। भींगते वस्त्र यौवन से लिपट कर, रागवृंत दमके। रति सी…