Hindi Poem Shak

शक | Hindi Poem Shak

शक ( Shak )   बिना पुख़्ता प्रमाण के शक बिगाड़ देता है संबंधों को जरा सी हुई गलतफहमी कर देती है अलग अपनों को काना फुसी के आम है चर्चे तोड़ने में होते नहीं कुछ खर्चे देखते हैं लोग तमाशा घर का बिखर जाता है परिवार प्रेम का ईर्ष्या में अपने भी हो जाते…