शक
( Shak )
बिना पुख़्ता प्रमाण के
शक बिगाड़ देता है संबंधों को
जरा सी हुई गलतफहमी
कर देती है अलग अपनों को
काना फुसी के आम है चर्चे
तोड़ने में होते नहीं कुछ खर्चे
देखते हैं लोग तमाशा घर का
बिखर जाता है परिवार प्रेम का
ईर्ष्या में अपने भी हो जाते हैं गैर
आपस में ही बढ़ा देते हैं बैर
समझे बिना निर्णय लेना नहीं
भेद घर के अपने कभी देना नहीं
बैठ कर भी समाधान हो जाता है
स्पष्ट कर लेने में जाता ही क्या है
हो जाए तने से अलग शाख यदि
तो सूख जाती हैं पत्तियां भी बचा क्या है
सुलझ ही जाती हैं उलझी हुई बातें
होते हैं अनमोल बड़े सभी रिश्ते नाते
आते हैं काम अपने ही वक्त आने पर
मेल के खातिर आप रहें सदैव तत्पर
( मुंबई )