इश्क़ जुगनू-सा | Ishq Jugnu sa
इश्क़ जुगनू-सा ( Ishq Jugnu sa ) जीवन के अंधियारे तिमिर में तुम जुगनू की तरह टिमटिमाये पल भर-प्रेम का दीवा जलाकर फिर कुहासा छाये जलते-बुझते जुगनुओं-सा नेह तुम्हारा पलता है ना आता है ना जाता है बस हल्का-सा स्पंदन देता है। जुगनू जैसे– जलता-बुझता वैसा तुम्हारा प्रेम दिखता है और— वैसे ही तुम भी…