जान छिड़कने लगे हैं | Poem jaan chidakne lage hain
जान छिड़कने लगे हैं ( Jaan chidakne lage hain ) तारे भी देखो ठिठुरने लगे हैं, लोग दुशाले अब ओढ़ने लगे हैं। उतर चुका है वो बाढ़ का पानी, अब से ही जान छिड़कने लगे हैं। कुछ दिन में लोग माँगेंगे रजाई, ठण्डी के पर देखो उगने लगे हैं। अलाव की तलब बढ़ेगी…