Kahan Tak

कहां तक | Kahan Tak

कहां तक ( Kahan Tak )   सिमटते गए भाव मन के घुलती रहीं मिठास में कड़वाहटें बढ़ तो गए किताबी पन्नों में आगे पनपत्ति रही मन की सुगबुगाहटें जगमगाती रहीं चौखटे, मगर आंगन घर के सिसकते रहे बढ़ते गए घर ,घर के भीतर ही खामोश बच्चे भी सुबगते रहे खत्म हुए दालान, चौबारे सभी…