अपने ही घर में बेगाने लगते हैं | Kavita Apne hi Ghar mein
अपने ही घर में बेगाने लगते हैं ( Apne hi ghar mein begane lagte hain ) मान मर्यादा इज्जत पाने में जाने कितने जमाने लगते हैं। कैसी करवट ली वक्त ने अपने ही घर में बेगाने लगते हैं। जान छिड़कने वाले ही हमको जानी दुश्मन लगते हैं। मधुर मधुर मुस्कान बिखेरे भीतर काले मन…