भ्रमित इंसान | Kavita Bhramit Insaan
भ्रमित इंसान ( Bhramit insaan ) जाने किस वहम में खोया क्या-क्या भ्रम पाले बैठा है। जाने किस चक्कर में वो औरों के छीनें निवाले बैठा है। भाति भाति सपने संजोए झूठ कपट का सहारा क्यों। मोहमाया के जाल में फंसता पैसा लगता प्यारा क्यों। रिश्ते नाते छोड़ चला नर अपनापन वो छोड़ दिया।…