Poem ghoorti nigahen

घूरती निगाहें | Poem ghoorti nigahen

घूरती निगाहें ( Ghoorti nigahen )   सिर पर तलवारों सी लगती हमको घूरती निगाहें अंगारों से वार सहती रहती अक्सर जीवन राहें   जाने क्यों भृकुटियां तनी नैनो से ज्वाला सी बरसे झील सी आंखें दिखाती तीर तलवार भाला बरछे   घूरती निगाहों का भी हौसलों से सामना कर लो बर्बादियों का कहर है…