जीवन पहेली समान | Kavita Jeevan Paheli
जीवन पहेली समान ( Jeevan paheli saman ) ऐसा है हमारा यह जीवन का सफ़र, चलते ही रहते चाहें कैसी यह डगर। ख़ुद के घर में अतिथि बनकर जाते, गांव शहर अथवा वह हो फिर नगर।। गांवो की गलियां और हरे-भरे खेत, पूछती है हमसे यह दीवारें और रेत। कौन हो भाई और कहा…