कलयुग की कली | Kavita Kalyug ki Kali
कलयुग की कली ( Kalyug ki kali ) कली, अधखिली सोंच में थी पड़ी, तरुणा में करुणा लिए क्रंदन का विषपान पिए रति छवि का श्रृंगार किए मन में ली वह व्यथित बला कलयुग कंटक की देख कला बन पायेगी क्या वह फूल भला! कली रुप में वह बाला जिसमें न थी जीवन ज्वाला…