पैसों की जुबा सुनलो

पैसों की जुबा सुनलो | Kavita paison ki zuban

पैसों की जुबा सुनलो ( Paison ki zuban sunlo )     हर बार कसूर क्यों मुझ पर ठहराते हो? मेरे लिए क्यों इंसान अपनों से अलग हो जाते हो ?   मैं आज हुँ कल नहीं फिर क्यों इतना इतराते हो ? मेरी मामूली किमत रिश्तों से क्यों लगाते हो ?   तुम्हारी बेमतलब…