Kavita Parampara

परंपरा | Kavita Parampara

परंपरा ( Parampara ) यह कैसी परंपरा आई, दुश्मन हो रहे भाई-भाई। घर-घर खड़ी दीवारें घनी, मर्यादा गिर चुकी खाई। परंपराएं वो होती, संस्कारों की जलती ज्योति थी। अतिथि का आदर, खिलखिलाती जिंदगी होती थी। होली दिवाली पर्व पावन, सद्भावो की धाराएं भावन। गणगौर तीज त्योहार, खुशियों का बरसता सावन। परंपराएं जीवंत रखती है, मान…