पत्थर | Kavita patthar
पत्थर ( Patthar ) उकेरते जाते हैं अक्स, तो सितम ढाती हैं छैनी यहां दर्द की परिभाषा मेरी ,जाने भला कौन हूं मोन ही बस मोन।। बिखरी पड़ी है इमारतों पर कई सालो से भाषाओं की , उकेरी गई हर प्रतिलिपि यहां मेरी दर्द की तस्वीर की तरह ।। में तराशा गया…