उठे जब कलम कोई | Kavita uthe jab kalam koi
उठे जब कलम कोई ( Uthe jab kalam koi ) उठे जब कलम कोई सिंहासन डोल जाता है सोया सारा धीरज जनता का बोल जाता है सड़के पूल को निगले वो दिग्गज बड़े भारी चंद चांदी के सिक्कों में कुर्सियां खरीदते सारी राज काली करतूतों का भांडा फूट जाता है उठे जब…