खुशियों की कैसी जिद्द तेरी | Poem Khushiyon ki Zid
खुशियों की कैसी जिद्द तेरी ( Khushiyon Ki kaisi Zid Teri ) ग़मों की वो शाम थी,बनी है लम्बी रात सी। अन्धियारा जीवन है, अन्धियारा दूर तक। खुशियों की कैसी जिद्द तेरी……. कहों तो सब बोल दूँ, ग़मों के पट खोल दूँ। चाहत के रिसते जख्म, दिखते है दूर तक। खुशियों की कैसी…