खुशियों की कैसी जिद्द तेरी | Poem Khushiyon ki Zid
खुशियों की कैसी जिद्द तेरी
( Khushiyon Ki kaisi Zid Teri )
ग़मों की वो शाम थी,बनी है लम्बी रात सी।
अन्धियारा जीवन है, अन्धियारा दूर तक।
खुशियों की कैसी जिद्द तेरी…….
कहों तो सब बोल दूँ, ग़मों के पट खोल दूँ।
चाहत के रिसते जख्म, दिखते है दूर तक।
खुशियों की कैसी जिद्द तेरी……..
नयना तरसते रहे, आँसू झलक कर गिरे।
चाहा था जिसको दिल ने, दिखता न दूर तक।
खुशियों की कैसी जिद्द तेरी…….
तन्हाँ कटे न रातें, घटती सी बढती आहे।
बादल में चन्दा जैसे, प्रियतम है दूर तक।
खुशियों की कैसी जिद्द तेरी……
हूंक हृदय में बढती,जीवन ये दुष्कर लगती।
कैसे कहु मै तुमसे,मेरी खुशिया ना दूर तक।
खुशियों की कैसी जिद्द तेरी….
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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