Kavita Main aur Meri Tanhai

मैं और मेरी तनहाई | Main aur Meri Tanhai

मैं और मेरी तनहाई ( Main aur Meri Tanhai )   मिलने को तो मिला बहुत, पर मनचाहा न मिला। निद्रालस नयनों को सपनों ने है बहुत छला। बनते मिटते रहे चित्र कितने ही साधों के। दण्ड भोगता रहा न जाने किन अपराधों के, साॅसों की पूंजी कितनी ही, मैंने व्यर्थ गंवाई। बहुत बार भयभीत…