मुह़ब्बत | Muhabbat
मुह़ब्बत ( Muhabbat ) न हीरों की खानें,न पन्नों के पर्बत। मुह़ब्बत से बढ़ कर नहीं कोई दौलत। बिना इसके कुछ भी नहीं ज़िन्दगी में। न हो यह तो क्या लुत्फ़ है बन्दगी में। यही चैन देती है हर इक नज़र को। इसी से चमकती है इन्सां की क़िस्मत। मुह़ब्बत से बढ़कर नहीं कोई दौलत।…