खाए हो चोट दिल पे | Mujra Khaye ho Chot Dil pe
खाए हो चोट दिल पे! ( Khaye ho chot dil pe ) ( मुजरा ) खाए हो चोट दिल पे मरहम लगाऊँगी, रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ मैं अपना बनाऊँगी। तसव्वुर मेरे हरदम रहोगे, कुंवारे बदन का रस भी चखोगे। काँटों की सेज छोड़, फूल पे सुलाऊँगी, रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ मैं अपना बनाऊँगी, खाए हो चोट दिल पे…