मुक्तक | Muktak
मुक्तक ( Muktak ) 1 सच जो लिख न सके वो कलम तोड़ दो, ये सियासत का अपने भरम तोड़ दो, इन गुनाहों के तुम भी गुनहगार हो, यार सत्ता न संभले तो दम तोड दो।। 2 भटक रहा हूँ मैं अपनी तिश्नगी के लिए.. ज़रूरी हो गया तू मेरी जिन्दगी के लिए.. फक़त…
मुक्तक ( Muktak ) 1 सच जो लिख न सके वो कलम तोड़ दो, ये सियासत का अपने भरम तोड़ दो, इन गुनाहों के तुम भी गुनहगार हो, यार सत्ता न संभले तो दम तोड दो।। 2 भटक रहा हूँ मैं अपनी तिश्नगी के लिए.. ज़रूरी हो गया तू मेरी जिन्दगी के लिए.. फक़त…