मुट्ठी भर आकाश | Mutthi bhar Aakash
मुट्ठी भर आकाश ( Mutthi bhar aakash ) घिस जाने दो पैर को लकीरें हांथ की लकीरें भी बदल जाएंगी खिल उठेंगे कमल दल पंक से लहरें भी सरोवर की बदल जाएंगी भर लो आकाश को मुट्ठी मे देखो न तपिश जलते सूरज की कनक को भी देखो तपते हुए जरूरी है आज भी…