Na hi inkar na hi izhar

ना ही इंकार ना ही इजहार | Na hi inkar na hi izhar

ना ही इंकार ना ही इजहार ( Na hi inkar na hi izhar )   ना ही इन्कार किया और ना ही इजहार किया। तुझको आँखों में बसा कर सिर्फ इन्तजार किया। मै भटकता ही रहा शाख, से टूटे पत्तो की तरह, तुझमे भी प्यार जगे, वक्त का एतबार किया।   उम्मीदों से भरे कलश…