नौशाबा की कविताएँ | Naushaba Poetry

नौशाबा की कविताएँ | Naushaba Poetry

खुद की पहचान ए जिंदगी अब हार जीत खुदसे होने लगी हैजिंदगी की डोर धीरे धीरे बदलने लगी है चाहता हूँ अब खुद से हि लड़ लेना पहलेभीतर हि कोई ज्योत नई सी जलने लगी है शिकायतें होने लगी हैं खुद से हि खुद को अबलगता है उलझी हुयी डोर अब सुलझने लगी हैं जमाने…