नौशाबा की कविताएँ | Naushaba Poetry
हुनर
मुझमें चेहरों को पढ़ने का हुनर कहाँ
पहेलियां सुलझाने का हुनर कहाँ मुझमें
सीधी सड़क के कंकड़ों कहाँ चुन पाती हूँ
चल रही कानाफुसी भी कहाँ सुन पाती हूं
सच के लगे मुखौटे से डरती हूँ बहुत
झुंठ से भि कहाँ मैं लड़पाती हूँ बहुत
यूं अलग अलग ढांचे में कहाँ ढल पाती हूँ
स्वार्थ गिरगिट की तरह कहाँ बदल पाती हूँ
जमाने के साथ मैं कहाँ चल पाती हूँ
बुलाती हैं सूरज की किरणे भी मुझे
मगर ताप उसके भी कहाँ सह पाती हूँ
चांदनी रात मयस्सर नहीं मुक्कदर मे शायद
बदरंग मे भि रंग ढूंढने का हुनर कहाँ
अंगुली उठाने का किसी पर हुनर कहाँ
सच की राहें बहुत मुश्किल नजर आती हैं
फज़र की किरणें भी बहुत दूर नज़र आती हैं
चल रही हूँ फिर भी जहाँ तक चल पाती हूँ
उम्मीद की डोर मे कहाँ तक संभल पाती हूँ
सहारा
लड़ा नही जाता अब हालातो से
अब टूटते हुए सपनो के टुकड़ों को
संभाला नही जाता
मां की ममता का स्नेह अब
बताया नही जाता
अब बस दुआ वों का सहारा है
मन्नतो का आसरा है
वक्त के साये तले
हर शक्स का बेनकाब चेहरा है
अपनी तन्हाई में अब हम
टूटते हुए मोती मंजूर नहीं करते
लड़खड़ाते कदम हम कुबूल नही करते
चमकती थी आंखे कुछ ख्वाब के लिए
अब ये हालात हम मंजूर नहीं करते
अब खुदासे से यह राह फिरसे कुबूल नही करते
टूटते हुए सितारों का
अब बस आसमा सहारा है
चमकते हुए तारो का
उजाला भी अब गहरा है
अब हालातों से लड़ा नही जाता
अब बस दुआ वों का सहारा है
आओ मिलकर नया साल मनाये
आओ मिलकर नया साल मनाएं
भुलकर सारे गम यह पल हम बिताएं
भुलाकर यादें बुरी कुछ अच्छी यादें बनाएं
भुलकर सारी परेशानियां कुछ पल खुशियाँ मनाएं
लेकर हसीन बातें यह दिन मनाएं
देकर सारी खुशिया खुदको,
यह खुबसुरत साथ मनाऐ ,
आओ आज मिलकर हम नया साल मनाऐ।
ऐ 2020
तूने हमे बहोत है सताया,
दुनिया मे कोरोना फैलाया,
हर खुशियों और त्योहारों पर सिर्फ,
फासलों का सिलसिला तूने बनाया।
ऐ 2020 हे शिकायते तुझसे ढेर सारी,
मगर तेरे आने से हमने अपनों का साथ पाया ,
तूने ही इंसानियत सिखाई,
क्या होती है देशभक्ती? यह बताई,
माना तूने हम सबको कैदी बनाया,.
24 घंटे घर मे बसाया,
मगर, तूने ही रिश्तों के धागों मे प्यार बढ़ाया,
अपनों का महत्त्व समझाया
इंसान को सही रास्ते पे लाया,
पहली बार इंसान ने सेहत के लिए पैसा छोडा .
जो घमंड था अमिरिका का वह भी तोड़ा,
ऐ 2020 तूने, किसान,
मकान की अहमियत समझायी.
डॉक्टर और पोलिस के बलिदानों को कीमत दिलवायी,
मुझे और मेरे परिवार को जिंदगी का नया सबक सिखाया ,
रास्ते मे मुश्किलों का शिखर पार कराया
जिंदगी से लढने का नया तर्जुबा पाया |
ऐ 2020 तूने इतिहास रचाया ,
हर इंसान को मुश्किलों का सामना करना बताया,
हमे हमारी गलतियों का अहसास दिलवाया ,
जीवन में लड़ना हर हाल में खुश रहना -सिखाया।
यादों का खजाना तेरो साथ खोला हमने.
वादी का समंदर तेरे साथ पूरा किया हमने ||
ये 2020 सच कहूं तो,
शुक्रिया जिंदगी मे नया मोड’ लाने केलीये,
हर वक्त को अहमियत दो यह समझाने के लिये ||
दोस्ती
मैं वादा करती हूं,
आखरी सांस तक दोस्ती निभाऊंगी।
तुम अगर भूल भी जाओगे,
याद हमें तुम्हारी जरूर आयेगी।
फर्क नही पड़ता
तुझे किसीसे गम बांटते देख,
होठों की खुशियों की महफिल सजाते देख,
ऐ दोस्त खुदसे वादा है,,
उम्र भर दोस्ती निभाना है,
भूल जाओगे तुम हमें महफिल में,
तन्हाई में गम बांटने आयेंगे हम,
कर लेंगे तेरे कम हर गम।
बस एक तुझसे वादा या कहो तो ,
इस दोस्ती की वजह चाहते,
छोड़ जाए जमाना,
तो याद हमें करना ,
तन्हाई सताए,
दो अल्फाज हमें बताना,
आंखों में नमी हो,
तो है किसकी कमी जरा हमे बताना।
ऐ दोस्त भूल जाए जमाना
मगर तूने एक दोस्त कमाया है,
उसका बस वादा निभाना।।
अभी तो रास्ता शुरू हुआ है
अभी तो असली मंजिल बाकी है,
तू इतने आसानी से हार कैसे मान सकती है ?
अभी तो असली लड़ाई बाकी है,
बस कर नकारात्मक बाते.
मत कर वह सब जो तेरे दिल को तोड जाते,
जो तुझे चाहिये वह तुझे किसी भी हाल में पाना है।
माना के तेरी उड़ान अभी भी बाकी है,
तू और मेहनत कर,
कोशिश कर
मत डर सब चीजों से
जो होंगा वह देखा जायेगा
कोशिश कर और खुद से कह,
तू सब कुछ कर सकती है।
सवाल
ऐ ख़ुदा एक सवाल पूछना है तुझसे,
और शिकायत करना छोड़ देना है आज से।
दिया तूने ही, जो मैने मांगा,
किया वह जो मेरे लिए बेहतर था,
लिया वह जो मेरे लिए न था,
दिल कई बातों पर परेशान होता है, .
ना जाने यह सवाल क्यूं मन मे सवाल आता है !
शिकायत नहीं यह सवाल है,
तेरे अलावा कोई नहीं मेरा दूजा ।
क्यू यह ख्वाब मेरे न हुये ?
क्यूं यह दिल एक न हुआ,
क्यूं यह दुनिया अलग है?
क्यूं यह सब चीजों का मोल स्थिर न हुआ,
यह सवाल है खुदा तुझसे यह शिकायत नहीं,
यह दिल के अल्फाज़ हैं।
यह कोई अरमान नही ,
यह न इच्छा है ना आकांक्षा यह तो सब सवाल हैं….
हसीन लम्हे
ये वक्त के हसीन लम्हे यूंही गुजर जायेंगे ,
सूरज ढल जाऐगा और सुबह का पता ना होगा ,
फुल भी मुरझा जायेंगे, इन मौसम से,
शायद ही बारिश का पता होंगा।
वैसे ही हम सब दोस्त यूंही बिछड़ जायेंगे,
शायद ही किसी दोस्त का पता लग पायेंगा,
इन प्यारे लम्हो का कोई हसीन खजाना बनायेगा,
हजारो को मिलेंगी बुलंदियां
हजारो को मिलेंगी परेशानियां,
हजारो को मिलेंगी मंजिलें ,
शायद ही किसी रास्ते का पता चल पाएगा,
इन खुबसूरत लम्हों का ख्वाब बन जाएगा,
दोस्तो से झगडा,
टीचर से डांट खाना,
चपरासी काका से बात करना।
शायद ही इन लम्हा का दोबारा मिलना
आसान होंगा ||
नौशाबा जिलानी सुरिया
महाराष्ट्र, सिंदी (रे)