नौशाबा की कविताएँ | Naushaba Poetry
कशमकश
यादों को दिल से हटाया नहीं जाता
बीते लम्हों को भुलाया नहीं जाता
अतीत के साथ को भी भुलाया नहीं जाता
दर्द भी जहाँ को बताया नहीं जाता
जख्मों को पालकर भी जिया नहीं जाता
हकीक़त के चिराग को भी बुझाया नहीं जाता
जीने की आरजू को भी जिलाया नहीं जाता
उम्मीदों के हौसले को भी दबाया नहीं जाता
उठे सवालों का जवाब नहीं दिया जाता
कशमकश मे भी दिन बिताया नहीं जाता
ऐ! जिंदगी
ऐ! जिंदगी……
रूठी रूठी सी क्यों लगती है
हर पल नाराज सी रहती है!
बेवफ़ाओं से परेशान करती है
वफ़ा की सजा का ऐलान करती है
रोशनी मे भी अंधेरे सी आती है नज़र
फर्ज के नाफरमानी का इल्जाम लगाती है
क्यूँ, ऐ! जिंदगी
लिबास पर भी मेरे उंगली उठाती है
वफा पर भी कमियां गिनाती है
मजबूर हूँ क्यूँ, खुदा की बारगाही मे
यूं आजमाइशों के खंजर दिखाती है क्यूँ
ऐ! जिंदगी
ऐतराज कलम से क्यों इतना
उससे दूरियाँ क्यों दिखाती है
बेवफाई मे वफा क्यों दूंढ बैठी
मेरी हि खता मुझे आज रुलाती है
तब भी, जलाती हूँ दीये उम्मीद की
भले बेजान सी जान मे जान नज़र आती है
ऐ! जिंदगी
इस कदर तू
रूठी रूठी सी क्यों लगती है
हर पल नाराज़ सी क्यूँ रहती है!!!
तेरी दोस्ती
लफ़्जों से तेरी दोस्ती को महकाया जाए
खुदा से कुछ वादों केलिए मनाया जाए
नहीं सुनाई देती तेरी आवाज अब
जाने क्यों रूठी रूठी सी लगती है
तन्हा रोती हैं जब पलकें
तेरी दोस्ती ही आचँल में छुपाती है
रूठी जिंदगी हो,या हो तन्हाई
दोस्ती हि सदा साथ खड़ी रहती है
दोस्ती सा दूजा कोई तोहफा नहीं
तुझ जैसी संगत नसीबों से मिलती है
दिल से चाहते हैं तुझे
आज भी तेरी दोस्ती के दीवाने हैं
टूटे न कभी यारी अपनी
खुदा से मन्नत यही मांगते हैं
मुस्कान रहे तेरी होठों पर हरदम
फूल सा महके जीवन आपका
हम करते हैं तुझे याद फ़कत
खुदा रखे खयाल आपका.
नीयत
ऐ खुदा!
ना हि कोई गिला तुझसे
ना ही कोई सवाल
क्यो नहीं मिला वह
इसका नहीं मलाल
ऐं खुदा!
रिश्तों को नये सजाते ऐसे
सजी हो रंगोली सितारों की जैसे
खेलते खेल जज्बातों के संग
हो जाते रंग वही फिर बदरंग
पड़ जाते फीके रंग मेहंदी के
उछल जाते सिक्के चंद चांदी के
बिखर जाती खुशियाँ सारी
पल भर की सजती दुनियाँ सारी
ऐसे रिश्ते बेजान चाहत के
जहाँ चमकते हों टुकड़े कागज के
ऐ खुदा!
क्या इन्हे हि इंसान कहा जाता
सजदे भी करके झूठें आंसू बहाता
जनाजे के अश्क मे भी वफादारी नहीं
नीयत मे हैं खोट भरे हुए
रूह भी लगती प्यारी नहीं
हुनर
मुझमें चेहरों को पढ़ने का हुनर कहाँ
पहेलियां सुलझाने का हुनर कहाँ मुझमें
सीधी सड़क के कंकड़ों कहाँ चुन पाती हूँ
चल रही कानाफुसी भी कहाँ सुन पाती हूं
सच के लगे मुखौटे से डरती हूँ बहुत
झुंठ से भि कहाँ मैं लड़पाती हूँ बहुत
यूं अलग अलग ढांचे में कहाँ ढल पाती हूँ
स्वार्थ गिरगिट की तरह कहाँ बदल पाती हूँ
जमाने के साथ मैं कहाँ चल पाती हूँ
बुलाती हैं सूरज की किरणे भी मुझे
मगर ताप उसके भी कहाँ सह पाती हूँ
चांदनी रात मयस्सर नहीं मुक्कदर मे शायद
बदरंग मे भि रंग ढूंढने का हुनर कहाँ
अंगुली उठाने का किसी पर हुनर कहाँ
सच की राहें बहुत मुश्किल नजर आती हैं
फज़र की किरणें भी बहुत दूर नज़र आती हैं
चल रही हूँ फिर भी जहाँ तक चल पाती हूँ
उम्मीद की डोर मे कहाँ तक संभल पाती हूँ
परिंदे ने
टूटे हुए परिंदोने सिर्फ
पंख ही तो मांगे थे
असमान में उड़ान के
कुछ सपने साजे थे।
यूँ तो जानते हो,
टूटकर हम सिमट जाते हैं
इस बार मगर,बहुत बिखरे हैं
चाहा था, खुद को संवार लूँ
खुद को भि कुछ निखार लूँ
गले लगाकर संभलने की
तैयारी की थी
इजाजत हि तो मांगे थे
ऐ मेरे दोस्त!
हर मोड़ पर तुझसे ही तो
हिम्मत पायी थी हमने
टूटी थी उम्मीदें जब भी मेरी
तुझ पर हि आश लगाई थी हमने
बिछाई थी किसी ने उलझनों की जाल
उठाये थे किसीने सवाल कई
बनाये थे बहाने कईयों ने
हर जवाब में मिली तन्हाई थी
तुमसे बस साथ हि तो मांगे थे
उड़ने को आकाश में
पंख ही तो मांगे थे
हमने भी कुछ सपने साजे थे..
तेरी
तेरी दोस्ती बहुत प्यारी ,
सबसे न्यारी है।।
दोस्त यह अहसास है,
दोस्त भी तो खास है।।
यह दोस्ती,
किसी मुलाकात की मोहताज नहीं,
इसमें हर लफ्ज़,
बया करने की जरूरत नही।।।
दर्द में आंसू यह पोछती है दोस्ती,
खुशी मे संग मुस्कुराती है दोस्ती।।
बस वादा कर,
एक इरादा कर।
दोस्ती को यू तोला नहीं करते,
प्यारी दोस्ती छोड़कर ,
बेतुकी खयाल लाया नही करते।।
इस खूबसूरत दोस्ती को ,
बदला नहीं करते,
साथ चल नहीं सकते ,
मगर संग दोस्ती के वादों को भुला नहीं करते।।।
कुछ
चल आज कुछ सुनाती हूं
लफ्जों मे अपने बया करती हूं
ज़िंदगी का यह बहुत प्यारा अहसास है
दूर होकर भी सब के दिल के पास है
मानो खुशियों का मेला है,
यह जीवन भी कहां अकेला है
सब ने गले से लगाया है मुझे
तोहफों से सजाया है मुझे
महफिल के साथीदार ,
हम भी कहलाते हैं
कोहिनूर से दोस्त
हर वादे निभाते हैं
ज़िंदगी के सारे गिले शिकवे हम भूल जाते हैं
जब लोग दिल से गले लगाते हैं
आज खुद पर भी हो रहा विश्वास है
शायद आज का दिन भी कुछ खास है।।
अधूरी
अकसर अधूरी रह जाती हैं बातें
अब बाबुल की याद में हि कटती है रातें
वक्त निकाल कर
बात तो कर लेते हैं
हाल ए दिल सुना देते हैं
मगर कुछ अधूरी कहानी रह जाती है
कुछ बाते सुनानी रह जाती है
जिम्मेदारियों में आंखे डूब जाती हैं
बाबुल की यादें भी बहुत सताती हैं
ऐ जिंदगी शिकायत नही तुझसे
खो दिया है बाबुल का आंगन खुदसे
फिक्र तो आज भी होती है
भाई कैसा होंगा
मां ने किससे अपना हाल बांटा होंगा
जिम्मेदारी का रिश्ता भी
यादों में खोने नही देता
रहती है याद सबकी सोने नहीं देता
हस्ता खेलता बाबुल का आंगन रहे
बस यही इल्तेजा खुदासे करती हु
अध्यापिका
अध्यापिका हो मेरी आप ही सबसे खास,
आपने ही कराया मुझे जीवन का अभ्यास,
आपने ही दिखाया मुझे मंजिल का रास्ता,
आप ही हो मेरे लिए सबसे बड़ी फरिश्ता |
आप ही मेरी राह हो, आप ही मेरी चाह हो
आप ही मेरी भक्ती,आप ही मेरी शक्ती हो
आप से ही हिम्मत और आप पर विश्वास
किस लफ्ज़ो मे आपका शुक्र अदा करू –
आपने ही सिखाया जीवन मे आगे बढ़ना
आप ही मेरी गुरु और मैं आपकी शिश्या
धन्य है आप हर जनम मैं मुझे मिले आप
हर जनम मैं आपसे लू शिक्षा ये मेरी इच्छा
बचपन
ना जाने हम कब बडे होगये,
माँ पकड़ के उगली चलना सिखाती थी।
आज खुद ही चलने के काबिल हो गये,
कल हम बच्चे थे, आज ना जाने इतने बड़े हो गये..
परिवार से दूर हो गए दोस्तो से पास हो गये,
वो बचपन मेरा था बहुत ही खुबसुरत |
पल मे हँस लिया करते थे, पल मे रो दिया करते थे।
ना ही कोई था इतना बोझ रिति रिवाजो का,
ना थी किसी भी जिम्मेदारी की फिक्र हमें
पेपर के वक्त हो जाती थी थोड़ी टेंशन सी
लेकिन फिर वही पेपर के बाद वो ही मस्ती
हंसते खेलते मुस्करा लिया करते थे ||
आज भी वो बचपन बहुत याद आता है
याद आते है वो बचपन के दोस्त और वो पल
कहते है बीते हुए पल कभी लौटकर नहीं आते
मुझे आज भी बहुत याद आते है वो बचपन के दिन
काश कोई मुझे लौटा दे वो मेरा खेलता हुआ बचपन
क्या मुझसे दोस्ती करोगे?
मै महफिल दोस्तों की नही सजाती,
दोस्त ही मेरी महफिल कहलाती,
कुछ अलग नजरिये हैं मेरे,
कुछ अलग आदतें रखती हूं,
हा जिससे सच्ची दोस्ती करती हूं,
आखरी सांस तक निभाती हूं,
क्या मुझसे दोस्ती करोगे?
बहुत सच्ची नजर आती हैं आंखे,
नही है कोई भी होटों पर दिखावे,
दिल तो आइना सा साफ रखते हो?
क्या अब मुझे अपनी दोस्त कहती हो?
जिंदगी के नए रंग में रहता हूं,
क्या मेरे संग दोस्ती का सफर तय करोगी ?
तुम मुझे बहुत पसंद हो,
सच्ची तुम बहुत अच्छी हो,
अब तो बता दो मुझसे दोस्ती करोगे?
कुछ खास नही मुझमें,
मगर मैं अपने सपनो के पास रहना पसंद करती हूं,
मैं अपनो के खुशी का खरीदार कहलाती हूं,
मैं थोड़ा गैर जवाबदार कहलाती हूं।
खुद की पहचान
ए जिंदगी अब हार जीत खुदसे होने लगी है
जिंदगी की डोर धीरे धीरे बदलने लगी है
चाहता हूँ अब खुद से हि लड़ लेना पहले
भीतर हि कोई ज्योत नई सी जलने लगी है
शिकायतें होने लगी हैं खुद से हि खुद को अब
लगता है उलझी हुयी डोर अब सुलझने लगी हैं
जमाने ने कुतर डाले थे पंख सपनों के मेरे
मगर उम्मीदें अब नई उड़ान भरने लगी हैं
ख्वाहिशों के पंख से हि पहुँचना है फलक तक
उम्मीदों की रोशनी भी साफ झलकने लगी है
हुयी है पहचान हमे जब से खुद की अपनी
कर गुजरने को अब कुछ, बाहें फड़कने लगी हैं
मैं चुप हूं
मेरे पास शब्दों की माला है
पास मेरे संस्कारों की थाती है
जानती हूं ,अच्छाई और बुराई के भेद
मेरी कलम ने सिखाया है मुझे
न करें मुझे
बेचारी और बेबस समझने की भूल….
मैं चुप हूं ,तो महज इसलिए की
मेरे संस्कार इसकी गवाही नहीं देते…
पता है मुझे
मेरी अच्छाइयां और बुराइयां भी
तुमसे, न डरी हूं न सहमी हूं
अन्याय को बर्दास्त करने की
फितरत नहीं मेरी
अत्याचार के खिलाफ
आवाज उठाना मेरी आदत मे शामिल है
और…यही मेरी ताकत भी…
ढेरा
सवालों का ढेरा है
बस दुआओं का सहारा है।।
मंजिल की राहों में बसेरा है
बस वक्त का चेहरा है।।
सवालों ने घेरा है
जिम्मेदारियों का पहरा है।।
ख़्वाब में तो आसमान की उड़ान है
खुदकी बनानी पहचान है।।
सवाल है दिल में फैला,
क्यू चल रहा तू दलदल में अकेला।।
साथ तेरे परछाई भी तो है,
हाथ सिर पर तेरे दुआएं भी तो है।।
नौशाबा जिलानी सुरिया
नया मोड़
आंखों में बसी है नमी खुदा
क्यों हो रही हु मैं खुदसे जुदा
चाहती हूं कोई दिल से लगाए
हो रही हूं खुद मे ही जैसे गुमसुदा
अजीब सा डर है दिल में समाया हुआ
बोझ जिम्मेदारियों का भी आया हुआ
रोने लगी हैं आंखें अब बहुत
बस बदल रही है अब ज़िंदगी बहुत
फिजा भी छूकर बेचैन कर जाती हैं
तारो से गुफ्तगू मे भी आंखें रुलाती हैं
वे भी जिम्मेदारी के नियम बताती हैं
अंधकार मे भी होना रोशन सिखाती हैं
बातों को सुन हंसी सी छूट जाती है
ऐसे मे केवल बाबुल की याद आती है
ऐ खुदा ! है अजीब मोड़ यह भी ज़िंदगी का
बस ,तेरी रहमत है तेरी बंदगी का
बीते लम्हे
खोली जब आज कुछ पुरानी चिट्ठियां
जिनमे महफिल बीते लम्हों को सजाई थी
मानो वक्त की इजाजत थी
लम्हों ने की हमारी हिफाजत थी
उगता हुआ सूरज,
और ढलती शाम देखकर,
मुस्कुराए थे
जीवन के कुछ हसीन पल ,
संग हमने बिताए थे
एक दूजे को यादों में हम बसाए थे
खिलखिलाती हंसी के पीछे
होठों पर जमी एक बात थी
अजीब से थे वो दिन ,अजीब सी रात थी
काश !
उन लम्हों को दुबारा जी लेते हम
फिर से कुछ हंस लेते कुछ मुस्करा लेते हम
सपनो की मंजिल ढूढने चले तो हैं हम
मगर पुराने लम्हों की यादों से आंखे हैं नम ।।
गुफ्तगू
बात तो करनी है तुझसे
पर,शुरू करूं कहां से !
लफ्जों को ढूंढ रही हूं
क्या कहूं यही सोच रही हूं
ज़िंदगी के नये रंग बताऊं
या लड़खड़ाते जमी पर पाव दिखाऊं
ख्वाबों को ढूंढती नजरें बताऊं
या हाल लिखती कलम दिखाऊं
बात तो करनी है तुझ्से
हौसले से उड़ती उड़ान बताऊं
या कसमसाती हुई धड़कन बताऊं
बात तो करनी है तुझ्से
अक्सर शाम डराती है मुझे
जिंदगी भी भगाती है मुझे
ठहरने की अब आदत नही मुझे
करूं क्या कल की बात तुझसे
बात तो करनी है तुझसे
पर,शुरू करूं कहां से..
तेरी
तेरी दोस्ती बहुत प्यारी ,
सबसे न्यारी है।।
दोस्त यह अहसास है,
दोस्त भी तो खास है।।
यह दोस्ती,
किसी मुलाकात की मोहताज नहीं,
इसमें हर लफ्ज़,
बया करने की जरूरत नही।।।
दर्द में आंसू यह पोछती है दोस्ती,
खुशी मे संग मुस्कुराती है दोस्ती।।
बस वादा कर,
एक इरादा कर।
दोस्ती को यू तोला नहीं करते,
प्यारी दोस्ती छोड़कर ,
बेतुकी खयाल लाया नही करते।।
इस खूबसूरत दोस्ती को ,
बदला नहीं करते,
साथ चल नहीं सकते ,
मगर संग दोस्ती के वादों को भुला नहीं करते।।।
कुछ
चल आज कुछ सुनाती हूं
लफ्जों मे अपने बया करती हूं
ज़िंदगी का यह बहुत प्यारा अहसास है
दूर होकर भी सब के दिल के पास है
मानो खुशियों का मेला है,
यह जीवन भी कहां अकेला है
सब ने गले से लगाया है मुझे
तोहफों से सजाया है मुझे
महफिल के साथीदार ,
हम भी कहलाते हैं
कोहिनूर से दोस्त
हर वादे निभाते हैं
ज़िंदगी के सारे गिले शिकवे हम भूल जाते हैं
जब लोग दिल से गले लगाते हैं
आज खुद पर भी हो रहा विश्वास है
शायद आज का दिन भी कुछ खास है।।
हुनर
मुझमें चेहरों को पढ़ने का हुनर कहाँ
पहेलियां सुलझाने का हुनर कहाँ मुझमें
सीधी सड़क के कंकड़ों कहाँ चुन पाती हूँ
चल रही कानाफुसी भी कहाँ सुन पाती हूं
सच के लगे मुखौटे से डरती हूँ बहुत
झुंठ से भि कहाँ मैं लड़पाती हूँ बहुत
यूं अलग अलग ढांचे में कहाँ ढल पाती हूँ
स्वार्थ गिरगिट की तरह कहाँ बदल पाती हूँ
जमाने के साथ मैं कहाँ चल पाती हूँ
बुलाती हैं सूरज की किरणे भी मुझे
मगर ताप उसके भी कहाँ सह पाती हूँ
चांदनी रात मयस्सर नहीं मुक्कदर मे शायद
बदरंग मे भि रंग ढूंढने का हुनर कहाँ
अंगुली उठाने का किसी पर हुनर कहाँ
सच की राहें बहुत मुश्किल नजर आती हैं
फज़र की किरणें भी बहुत दूर नज़र आती हैं
चल रही हूँ फिर भी जहाँ तक चल पाती हूँ
उम्मीद की डोर मे कहाँ तक संभल पाती हूँ
सहारा
लड़ा नही जाता अब हालातो से
अब टूटते हुए सपनो के टुकड़ों को
संभाला नही जाता
मां की ममता का स्नेह अब
बताया नही जाता
अब बस दुआ वों का सहारा है
मन्नतो का आसरा है
वक्त के साये तले
हर शक्स का बेनकाब चेहरा है
अपनी तन्हाई में अब हम
टूटते हुए मोती मंजूर नहीं करते
लड़खड़ाते कदम हम कुबूल नही करते
चमकती थी आंखे कुछ ख्वाब के लिए
अब ये हालात हम मंजूर नहीं करते
अब खुदासे से यह राह फिरसे कुबूल नही करते
टूटते हुए सितारों का
अब बस आसमा सहारा है
चमकते हुए तारो का
उजाला भी अब गहरा है
अब हालातों से लड़ा नही जाता
अब बस दुआ वों का सहारा है
आओ मिलकर नया साल मनाये
आओ मिलकर नया साल मनाएं
भुलकर सारे गम यह पल हम बिताएं
भुलाकर यादें बुरी कुछ अच्छी यादें बनाएं
भुलकर सारी परेशानियां कुछ पल खुशियाँ मनाएं
लेकर हसीन बातें यह दिन मनाएं
देकर सारी खुशिया खुदको,
यह खुबसुरत साथ मनाऐ ,
आओ आज मिलकर हम नया साल मनाऐ।
ऐ 2020
तूने हमे बहोत है सताया,
दुनिया मे कोरोना फैलाया,
हर खुशियों और त्योहारों पर सिर्फ,
फासलों का सिलसिला तूने बनाया।
ऐ 2020 हे शिकायते तुझसे ढेर सारी,
मगर तेरे आने से हमने अपनों का साथ पाया ,
तूने ही इंसानियत सिखाई,
क्या होती है देशभक्ती? यह बताई,
माना तूने हम सबको कैदी बनाया,.
24 घंटे घर मे बसाया,
मगर, तूने ही रिश्तों के धागों मे प्यार बढ़ाया,
अपनों का महत्त्व समझाया
इंसान को सही रास्ते पे लाया,
पहली बार इंसान ने सेहत के लिए पैसा छोडा .
जो घमंड था अमिरिका का वह भी तोड़ा,
ऐ 2020 तूने, किसान,
मकान की अहमियत समझायी.
डॉक्टर और पोलिस के बलिदानों को कीमत दिलवायी,
मुझे और मेरे परिवार को जिंदगी का नया सबक सिखाया ,
रास्ते मे मुश्किलों का शिखर पार कराया
जिंदगी से लढने का नया तर्जुबा पाया |
ऐ 2020 तूने इतिहास रचाया ,
हर इंसान को मुश्किलों का सामना करना बताया,
हमे हमारी गलतियों का अहसास दिलवाया ,
जीवन में लड़ना हर हाल में खुश रहना -सिखाया।
यादों का खजाना तेरो साथ खोला हमने.
वादी का समंदर तेरे साथ पूरा किया हमने ||
ये 2020 सच कहूं तो,
शुक्रिया जिंदगी मे नया मोड’ लाने केलीये,
हर वक्त को अहमियत दो यह समझाने के लिये ||
दोस्ती
मैं वादा करती हूं,
आखरी सांस तक दोस्ती निभाऊंगी।
तुम अगर भूल भी जाओगे,
याद हमें तुम्हारी जरूर आयेगी।
फर्क नही पड़ता
तुझे किसीसे गम बांटते देख,
होठों की खुशियों की महफिल सजाते देख,
ऐ दोस्त खुदसे वादा है,,
उम्र भर दोस्ती निभाना है,
भूल जाओगे तुम हमें महफिल में,
तन्हाई में गम बांटने आयेंगे हम,
कर लेंगे तेरे कम हर गम।
बस एक तुझसे वादा या कहो तो ,
इस दोस्ती की वजह चाहते,
छोड़ जाए जमाना,
तो याद हमें करना ,
तन्हाई सताए,
दो अल्फाज हमें बताना,
आंखों में नमी हो,
तो है किसकी कमी जरा हमे बताना।
ऐ दोस्त भूल जाए जमाना
मगर तूने एक दोस्त कमाया है,
उसका बस वादा निभाना।।
अभी तो रास्ता शुरू हुआ है
अभी तो असली मंजिल बाकी है,
तू इतने आसानी से हार कैसे मान सकती है ?
अभी तो असली लड़ाई बाकी है,
बस कर नकारात्मक बाते.
मत कर वह सब जो तेरे दिल को तोड जाते,
जो तुझे चाहिये वह तुझे किसी भी हाल में पाना है।
माना के तेरी उड़ान अभी भी बाकी है,
तू और मेहनत कर,
कोशिश कर
मत डर सब चीजों से
जो होंगा वह देखा जायेगा
कोशिश कर और खुद से कह,
तू सब कुछ कर सकती है।
सवाल
ऐ ख़ुदा एक सवाल पूछना है तुझसे,
और शिकायत करना छोड़ देना है आज से।
दिया तूने ही, जो मैने मांगा,
किया वह जो मेरे लिए बेहतर था,
लिया वह जो मेरे लिए न था,
दिल कई बातों पर परेशान होता है, .
ना जाने यह सवाल क्यूं मन मे सवाल आता है !
शिकायत नहीं यह सवाल है,
तेरे अलावा कोई नहीं मेरा दूजा ।
क्यू यह ख्वाब मेरे न हुये ?
क्यूं यह दिल एक न हुआ,
क्यूं यह दुनिया अलग है?
क्यूं यह सब चीजों का मोल स्थिर न हुआ,
यह सवाल है खुदा तुझसे यह शिकायत नहीं,
यह दिल के अल्फाज़ हैं।
यह कोई अरमान नही ,
यह न इच्छा है ना आकांक्षा यह तो सब सवाल हैं….
हसीन लम्हे
ये वक्त के हसीन लम्हे यूंही गुजर जायेंगे ,
सूरज ढल जाऐगा और सुबह का पता ना होगा ,
फुल भी मुरझा जायेंगे, इन मौसम से,
शायद ही बारिश का पता होंगा।
वैसे ही हम सब दोस्त यूंही बिछड़ जायेंगे,
शायद ही किसी दोस्त का पता लग पायेंगा,
इन प्यारे लम्हो का कोई हसीन खजाना बनायेगा,
हजारो को मिलेंगी बुलंदियां
हजारो को मिलेंगी परेशानियां,
हजारो को मिलेंगी मंजिलें ,
शायद ही किसी रास्ते का पता चल पाएगा,
इन खुबसूरत लम्हों का ख्वाब बन जाएगा,
दोस्तो से झगडा,
टीचर से डांट खाना,
चपरासी काका से बात करना।
शायद ही इन लम्हा का दोबारा मिलना
आसान होंगा ||
नौशाबा जिलानी सुरिया
महाराष्ट्र, सिंदी (रे)
यह भी पढ़ें :-
मेरी यादे | Meri Yaadein