Parinde par Kavita

परिन्दे | Parinde par Kavita

परिन्दे! ( Parinde )    परिन्दे ये तारों पे बैठने लगे हैं, बेचारे ये जड़ से कटने लगे हैं। काटा है जंगल इंसानों ने जब से, बिना घोंसले के ये रहने लगे हैं। तपने लगी है ये धरती हमारी, कुएँ, तालाब भी सूखने लगे हैं। उड़ते हैं दिन भर नभ में बेचारे, अपने मुकद्दर पे…