कुपित हो रही है यह प्रकृति | Paryavaran par Kavita in Hindi
कुपित हो रही है यह प्रकृति ( Kupit ho rahi hai yah prakriti ) आत्महंता कर्म हम कर रहे हैं, कुपित हो रही है यह प्रकृति जीव–जंतु सभी यहां मर रहे हैं है ये पर्यावरण की ही व्यथा कि, हो रहा जो पर्यावरण दूषित यहां आज सभी पक्षी भी हमारे लुप्त होते ! भोजन…