Poem Dhoop Sekne

धूप सेंकने वो आती नहीं | Poem Dhoop Sekne

धूप सेंकने वो आती नहीं! ( Dhoop sekne wo aati nahi )    आओ कुछ काम करें हम भी जमाने के लिए, कोई रहे न मोहताज अब मुस्काने के लिए। लुप्त होने न पाए संवेदना इंसानों की, कुछ तो बची रहे इंसान कहलाने के लिए। सुनो,जालिमों हुकूक मत छीनों मजलूमों का, कभी न सोचो इनका…