हरि अब दर्शन दो

हरि अब दर्शन दो | Poem hari ab darshan do

हरि अब दर्शन दो  ( Hari ab darshan do ) ***** ओ री हरि, अब दर्शन दो री। कलयुग में- मति गई मारी, क्या राजा? क्या भिखारी? जगत पापी से भरी, भगत पापी से लड़ी। धरा को है कष्ट अपार, त्राहि-त्राहि करे संसार। ओ री हरि, अब दर्शन दो री। असत्य सत्य पर अब है…