Poem meri sanskriti

मेरी संस्कृति | Poem meri sanskriti

मेरी संस्कृति ( Meri sanskriti )   है अलग मेरी संस्कृति नहीं उसमें कोई विकृति चुटकी भर सिंदूर तेरा मौन मेरी स्वीकृति गरिमा बढ़ाती लाल बिंदिया। विदेशी कर रहे अनुकृति पायलेे पैरों में मेरे सुनो उसकी आवृत्ति तुलसी पर जल चढ़ाएं यही हमारी प्रकृति रिश्तो की प्यारी प्रक्रिया फैला रही है जागृति हार जाए तो…