
मेरी संस्कृति
( Meri sanskriti )
है अलग मेरी संस्कृति
नहीं उसमें कोई विकृति
चुटकी भर सिंदूर तेरा
मौन मेरी स्वीकृति
गरिमा बढ़ाती लाल बिंदिया।
विदेशी कर रहे अनुकृति
पायलेे पैरों में मेरे
सुनो उसकी आवृत्ति
तुलसी पर जल चढ़ाएं
यही हमारी प्रकृति
रिश्तो की प्यारी प्रक्रिया
फैला रही है जागृति
हार जाए तो भी हममें
नहीं दिखती कोई विरक्ति
मेरी मिट्टी में समाहित
न जाने कितनी संस्कृति
वेशभूषा भाषा अलग है
फिर भी हममें है अनुरक्ति
टूट जाते माया जाल
यही हमारी है निवृत्ति