Poem on paras

पारस | Poem on paras

पारस ( Paras )   करामात होती पारस में जब लोहे को छू लेता है। कुदरत का खेल निराला धातु स्वर्ण कर देता है।   छूकर मन के तारों को शब्द रसीले स्नेहिल भाव। रसधार बहती गंगा सी रिश्तो में हो नेह जुड़ाव।   प्यार भरे दो बोल मीठे पारस सा असर दिखाते हैं। कल…