अब रहते नहीं परिन्दे | Poem on parindey
अब रहते नहीं परिन्दे ( Ab rahte nahi parindey ) क्यों ख़त्म कर रहे हो मेरे खुशबुओं का डेरा, अब रहते नहीं परिन्दे, उनका नहीं बसेरा। सब कुछ दिया है हमने, लेना मुझे न आता, मेरी पेड़ की है दुनिया,तू क्यों मुझे रुलाता? चंदा की चाँदनी भी देखो हुई है घायल, वादी सिसक रही…