शख्सियत | Poem shakhsiyat
शख्सियत ( Shakhsiyat ) बेवजह ना हमें आजमाया करों। बात दिल पे सभी न लगाया करों। टूट जाएगी रिश्तों की जो डोर हैं, रोज ऐसे ना दिल को दुखाया करो। साथ जब दो मिलेगे अलग शख्सियत। तब अगल ही दिखेगी सभी खाशियत। हमकों जबरन ना खुद सा बनाया करो, हुस्न…