Poem shakhsiyat
Poem shakhsiyat

शख्सियत

( Shakhsiyat )

 

 

बेवजह  ना  हमें आजमाया करों।
बात दिल पे सभी न लगाया करों।

 

टूट जाएगी रिश्तों की जो डोर हैं,
रोज ऐसे ना दिल को दुखाया करो।

 

साथ जब दो मिलेगे अलग शख्सियत।
तब अगल ही दिखेगी सभी खाशियत।

 

हमकों जबरन ना खुद सा बनाया करो,
हुस्न और इश्क का है अलग तबियत।

 

हमकों मगरूर कहने से क्या फायदा।
यह टंशन इश्क का है अलग जायका।

 

तुम भी संगदिल नही ये बताओ हमें,
वाद ए इल्जाम का है अलग कायदा।

 

रूठने और मनाने का हक है हमें।
नाज ओ नखरे उठाने का हक है हमें।

 

कभी तुम  भी  मेरी जान  आगे  बढ़ो,
दर्द ओ ग़म को बताने का हक हैं हमें।

 

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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