कैसे भरेंगे जख्म | Pollution poem in Hindi
कैसे भरेंगे जख्म? ( Kaise bharenge zakhm ) ये घाटी, ये वादी, सब महकते फूलों से, काश, ये आसमान भी महकता फूलों से। फूलों से लदे मौसम ये मटमैले दिख रहे, समझ लेते प्रकृति का असंतुलन,फूलों से। कंक्रीट के जंगल में अमराइयाँ न ढूंढों, लकड़हारे भी जाकर सीख लेते फूलों से। कटे जंगल,…