Kaise bharenge zakhm
Kaise bharenge zakhm

कैसे भरेंगे जख्म?

( Kaise bharenge zakhm )

 

ये घाटी, ये वादी, सब महकते फूलों से,
काश, ये आसमान भी महकता फूलों से।
फूलों से लदे मौसम ये मटमैले दिख रहे,
समझ लेते प्रकृति का असंतुलन,फूलों से।

 

कंक्रीट के जंगल में अमराइयाँ न ढूंढों,
लकड़हारे भी जाकर सीख लेते फूलों से।
कटे जंगल, परिन्दे बनाएंगे घोंसला कहाँ?
शज़र रात- रात भर जाके रोये फूलों से।

 

शोले उगलती धूप में जाओगे कैसे?
आएगी बहार कब, जाके पूछो फूलों से।
दरख्त सहमकर पूछते हैं हवाओं का दर्द,
कौन बाँट रहा मौत, जाके पूछो फूलों से।

 

निशि-दिन शहर की हवा हो रही बीमार,
कौन हुए अंधे-बहरे जाके पूछो फूलों से।
थरथरा रही ये जमीं, आसमां, ओजोन,
तेजाब की बारिश हुई, पूछते हैं फूलों से।

 

मत घोल काला जहर रात के कलेजे में,
मद्धिम हुए सितारे जाके पूछो फूलों से।
गुजरो जहाँ से माँगो फूलों के लिए दुआ,
कैसे भरेंगे जख्म, जाके पूछो फूलों से।

 

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )
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