प्रित का प्रेम | Prit ka Prem
प्रित का प्रेम ( Prit ka Prem ) मैं तुम्हें लफ्जों में समेट नही सकती क्योंकि– तुम एक स्वरूप ले चुके हो उस कर्तार का– जिसे मैं हमेशा से ग्रहण करना चाहती हूं किन्तु– समझा नही पाती तुम्हें कि– अपने विजन को छोड़कर यथार्थ जीने का द्वंद्व वाकई में किंतना भयप्रद है। नकार देती…