तांडव ( फ़िल्म समीक्षा )
तांडव ( फ़िल्म समीक्षा )

तांडव ( फ़िल्म समीक्षा )

( Tandav – Film Review )

 

“तांडव” देखी। राजनीति का फुल डोज है इसमें। यद्यपि यह आते ही विवादों में उलझ गयी लेकिन सच कहूं तो कुछ द्विअर्थी डायलॉग और एकाध आपत्तिजनक द्रश्यों के अलावा विरोध करने के लिए कुछ खास नही है।
चूंकि यह एक राजनीतिक सीरीज है सो इसे विवादों में पड़ना ही था। विवादित होने की सबसे बड़ी वजह सीरीज के शुरुआती एपिसोड में कहानी के एक पात्र द्वारा विश्विद्यालय कैम्पस में एक नाटक के दौरान भगवान शिव के रोल में मुंह से गन्दी गाली निकालना है।
चूंकि ऐसा एक मुस्लिम कलाकार (जीशान अय्यूब) द्वारा किया गया सो इस पर और अधिक विवाद छिड़ गया।जीशान अय्यूब, सैफ अली खान के अलावा इसके निर्देशक Ali Abbas Zafar हैं जो कि मुस्लिम हैं।
इन पर हिन्दू भावनाओं को भड़काने का आरोप है जो कि उस सीन (भगवान शिव के रोल में मुंह से गाली निकालना) को देखते हुए कहा जा सकता है कि विरोध जायज है। बेहतर है कि इस सीरीज से उस सीन को निकाल दिया जाए अथवा बदल दिया जाए।
यद्यपि शो के निर्माताओं ने आपत्तिजनक द्रश्यों को निकालने की बात कह कर लोगों से माफी मांगी है लेकिन देखना होगा कि वह ऐसा कब तक करते हैं क्योंकि रिलीज होते ही यह सीरीज आम लोगों तक पहुंच चुकी है। जबकि विवाद अभी भी थमा नही है।
इस सीरीज के विवादित होने की एक वजह यह भी है कि इसमें JNU को VNU छद्म नाम देकर खूब प्रचारित किया गया और विवादित नारों को इसमे जोरों-शोरों से पात्रों द्वारा बुलवाया गया जैसे कि ब्राह्मणवाद से आजादी चाहिए, मनुवाद से आजादी चाहिए आदि।
यह सच है कि ऐसे विवादित नारे JNU में लगते हैं लेकिन सीरीज के मार्फ़त उन्हें दिखाना ऐसे मुददों को बढ़ावा देना ही होगा।ऐसा लगता है जैसे चुन चुनकर ऐसी चीजें सीरीज में डाली गयीं जिनसे भारतीय जनमानस में  “क्रांति” जैसी कोई चीज हो।
इसी शो में एक जगह डायलॉग आता है जब एक ऊंची जाति की प्रोफेसर नीची जाति के बड़े नेता से आंतरिक सम्बंध रखती है, उन्ही पर यह डायलॉग अन्य पात्र द्वारा कहलवाया जाता है कि “नीची जाति वाला व्यक्ति ऊंची जाति की महिला से बिस्तर पर प्रेम नही कर रहा होता बल्कि सदियों के अत्याचार का बदला ले रहा होता है”।
अब बताइये ऐसे फूहड़ वाक्यों को बुलवाकर शो के कर्ता-धर्ता क्या साबित करना चाहते हैं? यह डायलॉग भी विवादित की श्रेणी में आता है।
इस शो के राइटर Gaurav Solanki जी हैं। अच्छा लिखते हैं। उनकी चर्चित पुस्तक “11वीं A के लड़के” पढ़ रहा हूँ। उन्मुक्त विचारों में अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं।
इस सीरीज की स्क्रिप्ट भी उन्होंने अच्छी लिखी है और काफी अच्छे डायलॉग भी लेकिन तब भी भगवान शिव का किरदार निभा रहे कलाकर द्वारा गाली दिलवाना कतई सही नही कहा जा सकता।
इन कुछ विवादित चीजों को छोड़ दें तो सीरीज अच्छी है, देखने योग्य। खासकर उनके लिए जो राजनीति में रुचि रखते हैं।यद्यपि यह काल्पनिक कहानी है लेकिन कई चीजें वास्तविक जिंदगी से उठायी गयी हैं।
कलाकारों की बात करें तो सैफ अली खान, जीशान अय्यूब, डिम्पल कपाड़िया और सुनील ग्रोवर जैसे मंजे हुए कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से कहानी में जीवंत जान डाल दी है।
यदि राजनीति में रुचि हो, 5 घण्टे का समय हो और द्विअर्थी सम्वाद, गालियां झेलने की क्षमता हो तो यह सीरीज आपके लिए है।

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