उनकी चाहत में | Unki Chahat Mein
उनकी चाहत में
( Unki Chahat Mein )
इश्क़ में जब से वो कबीर हुए
उनकी चाहत में हम सग़ीर हुए
कोई तुम सा नहीं है जाने जाँ
इश्क़ में तुम तो यूँ नज़ीर हुए
उठ के ताज़ीम अब वो करते हैं
जिनकी नज़रों में हम हक़ीर हुए
तिश्नगी मेरी बुझ न पाई कभी
चाहे कितने ही आब गीर हुए
आज से दिल तुम्हे ये सौंप दिया
इस रियासत के तुम वज़ीर हुए
बनके राँझा फ़िदा थे वो हम पर
और हम भी उन्हीं की हीर हुए
तय किया इश्क़ का सफ़र मीना
तब कहीं जा के हम मुशीर हुए
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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