फिर क्यों?
फिर क्यों?
हम बंटेंगे तो कटेंगे
फिर क्यों बंटे हैं?
जातियों में
धर्मों में
ऊॅंच में
नीच में
शिकार हो रहे हैं –
केवल गरीब
लुट रहे हैं –
केवल बदनसीब
मारे जा रहे हैं –
पेट के भूखे।
लोकतंत्र की पद्धतियाॅं
ऐसी नहीं है
जो तोड़ती ही नहीं
झुका देती है पेट के बल
तड़पने के लिए
भूख से
प्यास से
अधमरे जीवन के लिए।
फिर भी
आम जन के लिए
आज भी न जानी क्यों?
लोकतंत्र छोटा ही है!
रचनाकार : रामबृक्ष बहादुरपुरी
अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश