तरफदारी
चाचा-चाची, चिंकी और पिंकी (क्रमशः 4 व 6 वर्षीय) शैतानी कर रही हैं। मेरे समझाने पर भी मेरा कहना नहीं मान रही हैं, आराम से बैठकर नहीं खेल रही हैं। वे बेड के ऊपर कूद रही हैं, शोर मचा रही हैं और बार-बार बिजली के सॉकेट में हाथ डालने की कोशिश कर रही हैं। कहीं ऐसा ना हो कि उनको चोट लग जाए, बिजली का करंट लग जाए।
मेरे दस वर्षीय बेटे बन्शु ने अपनी पढ़ाई में डिस्टर्ब होने पर, घर के ऊपर रह रहे चाचा-चाची को आवाज लगाते हुए कहा। लेकिन चाचा-चाची ने बन्शु की आवाज पर कोई रिस्पांस नहीं दिया। इस तरह कई बार बन्शु ने अपने चाचा और चाची को… चिंकी व पिंकी की शैतानियों को देखते हुए आवाज़ लगाई, लेकिन स्थिति वही रही। रिस्पांस शून्य रहा।
मैं कुछ समय पहले ही ऑफिस से घर आया था। मुझे अपने छोटे भाई अनुज और उसकी पत्नी रानी का इस तरह अनजान बनना, बन्शु की बातों पर गौर न देना..खल रहा था। यह उनकी रोज की बात थी। अनुज घर के ऊपरी हिस्से में रहता था और मैं अपनी पत्नी वर्षा और माँ के साथ नीचे(ग्राउंड फ्लोर पर) रहता था।
अनुज की दो बेटियां थी। अनुज और उसकी पत्नी अपने आराम व मौज मस्ती के लिए अपनी दोनों बेटियों को रोज नीचे भेज दिया करते थे और बच्चों की तरफ से बिल्कुल बहरे और बेखबर हो जाते थे।
अनुज के मन में एक विचार था कि उसके बच्चे अपने आप ही समझदार हो जाएंगे, उसे उनकी परवरिश में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं है। लेकिन जब उसके भाई ने उसे समझाने की कोशिश की, तो वह अपने बच्चों की तरफदारी करने लगा।
आज भी वही स्थिति थी। बन्शु को अपनी पढ़ाई में बहुत दिक्कत हो रही थी। बन्शु ने अपनी पढ़ाई छोड़कर कई बार उनको बेड से गिरने से बचाया और उनको ऊपर ले जाने के लिए चाचा चाची को आवाज लगाई। लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया। अब मैं खुद बन्शु के कमरे में गया। वहाँ मैंने देखा कि चिंकी अपनी छोटी बहन पिंकी के गाल दोनों हाथों से खींचकर, उन्हें अपने तेज नाखूनों से नोच रही थी।
पिंकी दर्द से छटपटाकर बहुत जोर से रो रही है। यह देखकर मुझे गुस्सा आ गया और मैंनें चिंकी के गाल पर एक हल्का सा चपत लगा दिया और डांटते हुए कहा- “तुम बार बार शैतानी क्यों कर रही हो। तुम्हें एक बार में बात समझ में नहीं आती।
जब भैया बार-बार समझा रहा है कि शैतानी मत करो, बदतमीजी मत दिखाओ तो क्यों बार-बार इस तरीके से हरकत कर रहे हो? यह गलत है। ऐसा नहीं करना चाहिए। अच्छे बच्चे कहना मानते हैं, अपने भाई बहन का ध्यान रखते हैं और तुम ही अपनी छोटी बहन पिंकी के गाल खींचकर उसे रुला रही हो।”
मेरे इस तरह डांटने से चिंकी रोने लगी। चिंकी-पिंकी के रोने की आवाज सुनकर मेरा छोटा भाई अनुज छत से नीचे उतर आया और बच्चों के रोने का कारण जाने बिना ही अपने बच्चों की तरफदारी करते बोलने लगा- “मेरे बच्चों पर हाथ क्यों उठाया? मेरे बच्चों को कोई प्यार नहीं करता, सब उन्हें डांटते रहते हैं। आइंदा मेरे बच्चों पर हाथ उठाने की कोई जरूरत नहीं है।”
“ये कौनसा तरीका हुआ बात करने का? जब हम तुम्हारे बच्चों को प्यार करते हैं, उनका ध्यान रखते हैं तो उनकी गलती पर क्या हम बच्चों को डाँट भी नहीं सकते। याद रखना, हम बच्चों को अपनी खुशी से नहीं डाँट रहे। गलती तुम्हारी हैं जो तुम्हें इतनी देर से बन्शु की आवाज ही न आई।
अब जबकि चिंकी की बदतमीजी देखकर उसको डाँट लगा दी तो उसके रोने की आवाज तुम्हें आ गई और तुम यहाँ लड़ने उतर आए। ऐसा नहीं है कि तुम्हें बन्शु की आवाज सुनाई न दी होगी। पता तुम्हें भी है कि तुम्हारे बच्चे नीचे क्या कर रहे थे?
लेकिन तुम अनजान बने रहे। सोचो, तुम्हारे बच्चे बार-बार बिजली के सॉकेट में हाथ डालने की कोशिश कर रहे थे। अगर उन्हें कुछ हो जाता तो इसका जिम्मेदार कौन होता? तुम्हारी लापरवाही के कारण तुम्हारे बच्चों की जान जोखिम में पड़ सकती थी। गलती तुम्हारी है, तुम अपने बच्चों को सही तरीके से नहीं पाल रहे हो। उन्हें अनुशासन और जिम्मेदारी की शिक्षा नहीं दे रहे हो। अगर तुम अपने बच्चों को सही तरीके से पालते, तो वे ऐसी हरकतें नहीं करते।”
अनुज ने मेरी बातों को अनसुना कर दिया और अपने बच्चों को लेकर ऊपर चला गया। लेकिन मैं जानता था कि अनुज की इस तरह की प्रतिक्रिया से समस्या का समाधान नहीं होगा। मुझे लगा कि अनुज को समझाने की जरूरत है, लेकिन इस बार मुझे अपने तरीके को बदलना होगा।
मैं अनुज के पास गया और उससे कहा- “देखो अनुज, मैं तुम्हारे बच्चों को नहीं मारना चाहता, लेकिन उन्हें सही तरीके से जीने की शिक्षा देना चाहता हूँ। तुम्हें अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेनी होगी और उन्हें सही तरीके से पालना होगा। अगर तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम्हारे बच्चे भविष्य में बहुत बड़ी समस्याओं का सामना करेंगे।”
अनुज ने मेरी बातों को सुना और थोड़ा शांत हुआ। उसने कहा- “मैं अपने बच्चों को सही तरीके से पालने की कोशिश करूंगा, लेकिन तुम्हें भी समझना होगा कि मैं अपने बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ और उनकी हर गलती को माफ करने को तैयार हूँ।”
मैंने अनुज को समझाया- “प्यार और माफ करना एक बात है, लेकिन अनुशासन और जिम्मेदारी की शिक्षा देना दूसरी बात है। तुम्हें अपने बच्चों को दोनों की शिक्षा देनी होगी, तभी वे सही तरीके से जीने की कला सीख पाएंगे।”
अनुज ने मेरी बातें सुनीं और थोड़ा शर्मिंदा हुआ। उसने कहा- “मैं समझता हूँ कि मैंने अपने बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दिया, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम मेरे बच्चों पर हाथ उठाओ।”
मैंने अनुज को समझाया- “मैंने चिंकी को डांटा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उसके साथ मारपीट कर रहा हूँ। मैं सिर्फ उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश कर रहा हूँ। तुम्हें अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेनी होगी और उन्हें सही तरीके से पालना होगा।”
अनुज ने मेरी बातें मानी और अपने बच्चों को सही तरीके से पालने का वादा किया। इसके बाद, अनुज ने अपनी बेटियों को समझाया और उन्हें सही तरीके से व्यवहार करने की शिक्षा दी। धीरे-धीरे अनुज के बच्चों में सुधार आया और वे अपने चाचा और पिता के साथ मिलकर रहने लगे। हमारे परिवार में शांति और समझदारी की भावना बढ़ी और हम सभी एक साथ मिलकर खुशी से रहने लगे।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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