आधी शताब्दी की मदहोशी.. मैं ना भूलूंगा.. मैं ना भूलूंगी
मैं ना भूलूंगा.. मैं ना भूलूंगी.. इन रस्मो को.. इन कसमो को.. इन रिश्ते नातो को.. मैं ना भूलूंगा.. मैं ना भूलूंगी.. ह्दय की अथाह गहराइयों से निकला यह गीत शायद ही कोई ऐसा होंगा जिस ने की ना सुना होंगा.. ना गाया होंगा।
मुझे तो यह गीत तब से पसंद है तब जबकि इस के अर्थों को भी समझ नही पाता था.. माँ की उंगली थामे लेडीज क्लास में मैने देखी थी यह फ़िल्म जिसका नाम है रोटी, कपड़ा और मकान.. मनोज कुमार जी और जीनत अमान जी की मुख्य भूमिका.. शशि कपूर जी और अमिताभ बच्चन जी सहयोगी कलाकार।
फ़िल्म का निर्माण भी मनोज कुमार जी ने ही किया था मगर आज की मेरी सोच फ़िल्म को ले कर नही है बल्कि उस गीत को ले कर है जो कि लगभग पचास बरस का होने को आ रहा है और आज भी वह उतनी तन्मयता से गाया ओर सुना जाता है जितनी कि उन दिनों।
इस गीत की अधिकतर मुख्य रसिया जनता अब हमारे साथ लगभग नही सी की अवस्था मे है.. हम नन्हे मुन्ने स्वयं अब युवावस्था को लांघ कर प्रौढ़ जीवन मे प्रवेश करने वाले है तो उन दिनों का तीस वर्षीय युवा आज हमारे बीच होंगे ही ऐसी आशा हम नही कर सकते।
हालिका यह सभी के लिए नही कहा जा रहा है बल्कि सरकारी दावा की अब हम अधिक जीने लगे हैं और हमारी औसत आयु अब सत्तर पचहत्तर तक हो गयी है इस बात को आधार बना कर कही गयी है।
तो फ़िल्म में और भी कुछ गीत थे मगर न जाने क्यो मन तो बस इसी गीत पर ठहरा सा हुआ है जिस के बोल थे मैं ना भूलूंगा.. गीत लिखा था मशहूर गीतकार श्री संतोष जी ने.. संगीत रचा था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी ने और गाया था स्व. लता जी और स्व. मुकेश जी ने.. उफ कितने प्यारे बोल है मैं ना भूलूंगा.. सच मे बहुत ही प्यारे बोल।
यह गीत मुझे इस कदर उन दिनों भाया था कि मैं इसकी एक कैसेट ही खरीद लाया था.. ओर पूरी कैसेट में सिर्फ एक ही गीत बार बार सुनता था.. मैं ना भूलूंगा.. मैं ना भूलूंगी.. गीत सुनते सुनते मैं भाव विभोर हो जाता था.. माफ कीजिये साहेब था नही बल्कि आज भी हो जाता हु।
उन दिनों के बनिस्बत आज अधिक.. वजह है.. वजह यही की मैं इस कालजयी रचना के गहरे अर्थों को समझने लगा हु.. तब धुन मधुर लगती थी और आज धुन के साथ साथ गीत के अर्थ भी.. प्रेमी ओर प्रेमिका के बीच का संवाद।
कुछ कसमें कुछ वादे.. कुछ रस्मो की दुहाई.. गजब के बोल है.. चलो जग को भूलें, खयालों में झूलें
बहारों में डोलें, सितारों को छूलें
आ तेरी मैं माँग संवारूँ तू दुल्हन बन जा,
माँग से जो दुल्हन का रिश्ता मैं ना भूलूँगी.. प्रेम के आवेग में जग को भूल जाने की बात की जा रही है.. ख्वाबो खयालो में झूला झूलने की ललक है।
मदहोशी इस कदर है कि बहारों में डोलने की ओर सितारों को छूने कल्पना की जा रही है और इसी के साथ प्रेमी कह रहा है बस बहुत हुआ.. आ.. आ जा.. अब तेरी मांग भरने का समय आ गया है।
तेरी दुल्हन बनने की घड़ी आ गयी है ओर प्रेमिका जवाब में कह रही है प्रिये तुम मुझे दुल्हन बनाना चाहते हो मगर यक़ी मानो मांग से दुल्हन का जो रिश्ता है न वह मुझे पता है.. मैं जानती हूं.. मैं इसे कभी नही भूलूंगी.. कभी नही।
प्रेमी ओर प्रेमिका के साथ हम सब भी तो यही कहते हैं कि यह गीत हम कभी नही भूलेंगे.. कभी नही.. गीत में आगे और भी बोल है.. उस पर भी हम बात करेंगे मगर अभी नही.. भाग 2 में.. फिलहाल तो अभी हम रुकेंगे ओर इस गीत को फिर एक बार सुनेंगे ओर एक खुमारी में उतर जाएंगे.. अनेक अनेक धन्यवाद।
रमेश तोरावत जैन
अकोला
यह भी पढ़ें:-