आंचल छांव भरा | Aanchal Chhanv Bhara
आंचल छांव भरा
( Aanchal Chhanv Bhara )
हो गर साथ उसका तो तू क्या मिटा पायेगा।
ख़ाक हो जाएगा तिरा अहम् तू निकल ना पायेगा।
दर्द , ज़ख्म हैं पोटली में उठा और जिये जा।
रिसते ज़ख्मों को भला कहां तू दिखा पायेगा।
आंचल छांव भरा चला गया साथ मां के।
ममता का साया तू अब कहां से पायेगा।
रौनकें पलक झपकते ही गई बाग की।
माली विन अब कलियां कौन बचा पायेगा।
घायल पड़ा हो शिकारी खुद ही तो भला।
परिंदों भरा जाल वो कहां उठा पायेगा।
उठा के सर खड़ा हो सामने दुनिया के।
देख फिर कोई कहां तुझे दबा पायेगा।
सुदेश दीक्षित
बैजनाथ कांगड़ा
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