हिंदू समाज में जितनी अंध श्रद्धा है उसका क्या कहा जाए? अपने सैकड़ो देवी देवताओं को छोड़कर के न जाने लोग क्यों मजारों पर जाते हैं। हमारे गांव के पास सिकंदरा नामक जगह में एक गाजी मियां की मजार है। जहां पर आसपास के गांव के हिंदुओं को जब तक इतवार और बुधवार को सिन्नी नहीं चढ़ा लेते उनका भोजन ही नहीं पचता है।

एक प्रकार से यह उनकी अंध श्रद्धा एवं मानसिक गुलामी है। एक प्रकार से जिसके मन में जो बातें बैठा दी जाए पीढ़ी दर पीढ़ी इस प्रकार का चिंतन वह करता रहता है। अधिकांश कभी आप मजारों पर जाएं तो देखें उठा पटक करते रहते हैं। चीखते चिल्लाते हैं ।आऊ बाऊ बकते हैं । यह क्या बोल रहे हैं कुछ समझ में नहीं आता। इसमें महिलाएं कुछ ज्यादा ही सक्रिय रहते हैं।

देखा गया है कि पूरे कचहरी चलती है। जजमेंट के उद्घोष किए जाते हैं। मौलवी उल्टा सीधा कुछ पूछता है और औरतें बाल खोल करके उसके प्रश्नों का उत्तर देती रहती हैं। अधिकांश ऐसी मजारों पर मुस्लिम महिलाओं की अपेक्षा हिंदुओं की औरतें ही ज्यादा जाते हैं। ऐसा लगता है सारे भूत प्रेत चुड़ैल डायन साइन सब हिंदुओं की औरतों को ही पकड़ते हैं।
एक बात बता दें ऐसे मौलियों में ना कोई ताकत होती है।ना कोई झाड़ता फूंकता है । यह मात्र बकवास के अलावा कुछ नहीं है।

एक बार मैंने एक मजार के प्रबंधक से पूछा कि इसमें कुछ होता जाता है कि ऐसे ही सब दुकानदार चल रही हैं। उसने स्वीकार किया कि सब रोटी दाल का चक्कर है। इसी मजार दरगाह से पीढ़ी दर पीढ़ी हमारा परिवार चल रहा है।
लोगों को यह पता नहीं है कि वहां कुछ है या नहीं बस बाप दादाओं ने किया इसलिए कर रहे हैं। अरे पूजा करनी ही है तो उस महान राजा सुहेलदेव सिंह की करनी चाहिए जिसने गाजी मियां को बहराइच में मार दिया था।

लेकिन मूढ़ हिंदू को कौन समझाए। एक बार जब मूढ़ता किसी परिवार में सुरू हो जाती है तो वह उतरने का नाम नहीं लेती हैं। मूढ़ता का कोई इलाज नहीं है। हिन्दूओं की औरतों को जो भूत प्रेत आदि पकड़ता है। वह अपने पति और परिवार को परेशान करने के लिए नाटक करती है। न तो इस दुनिया में कोई भी किसी को भूत प्रेत आदि पकड़ता है और न ही कोई झाड़ता फूंकता है। यह मात्र एक प्रकार का मानसिक वहम होता है। जिसको ऐसा वहम हो जाता है वह पीढ़ी दर पीढ़ी उससे परेशान रहता है।

सिकंदरा के आसपास के गांव में हिंदुओं का कोई ऐसा घर नहीं होगा जो मजारों पर जाकर चिन्नी प्रसाद ना चढ़ाता हो। हमने तो देखा है इस अंधविश्वास का नशा ऐसा सवार है कि यदि कोई चार भाई है तो चारों पूजा करते हैं।

यह अंध श्रद्धा ऐसी होती है। पीढ़ी दर पीढ़ी एक भय मन में बैठा दिया जाता है कि यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हारा ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा। यह भय ही मनुष्य को अंध श्रद्धालु बनाए रखना है। औरतों को कुछ ज्यादा ही भूत प्रेत पकड़ता है। और देखा गया है वही इस अंधविश्वास को बढ़ावा भी देती रहती हैं।

कहा जाता है एक एक शराबी पिता से अंधविश्वासी मां ज्यादा घातक होती है। क्योंकि शराबी पिता तो चाहता है कि बच्चा शराब न पिए लेकिन अंधविश्वासी मां अपने बच्चों को और अंधविश्वासी बना देती है। मां द्वारा प्रत्यारोपित यह अंधविश्वास हजारों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है।

हमारा समाज कितना भी शिक्षित हो जाए,चांद पर पहुंच जाए लेकिन उसके दिमाग में जो अंध श्रद्धा का भूसा भर दिया गया है वह निकलने वाला नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति इन अंधविश्वासों का विरोध भी करता है तो उसे यह कह कर चुप करा दिया जाता है की चार अक्षर पढ़ कर तेरे दिमाग में भूसा भर गया है।

तू क्या जाने,तेरे बाबा भी मानते थे ,तेरे पिता भी मानते थे, क्या वह बेवकूफ थे। ऐसी स्थित में चाहकर व्यक्ति ऐसे अंधविश्वास को रोकने में सफल नहीं हो पाता। हिंदू समाज अंधविश्वास में इतना जकड़ा हुआ है हो सकता है और कोई समाज इतना जकड़ा हो।

समाज को चाहिए कि वह इन कुरीतियों से स्वयं को बचाए एवं अपने परिवार को बचाएं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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