atal bihari vajpayee

राजनीति के चाणक्य | अटल बिहारी वाजपेयी

राजनीति में जिस एक व्यक्ति ने किसी पार्टी को शून्य से शिखर तक पहुंचाया हो और देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुआ हो वह थे – अटल बिहारी वाजपेयी ।

अटल जी जहां एक ओर राजनेता थे वहीं उनका हृदय कवि प्रेम से भरा हुआ था। आजादी के पश्चात गैर कांग्रेसी वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री , संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थाई समितियां के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई।

उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 ई को उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के बटेश्वर नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेई ग्वालियर में अध्यापन कार्य के साथ हिंदी और ब्रज भाषा के सिद्ध हस्त कवि थे। उनकी प्रसिद्ध कविता है —
गीत नहीं गाता हूं ,
बेनकाब चेहरे हैं ।
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटा तिलिस्म आज ,
सच में भय खाता हूं,
गीत नहीं गाता हूं ।
अपनों के मेल में ,
मीत नहीं पाता हूं ,
गीत नहीं गाता हूं ।

जिंदगी में कभी-कभी ऐसे भी क्षण आते हैं कि व्यक्त अपने मार्ग की कठिनाइयों को देखकर उससे भटक सा जाता है —
बाधाएं आती हैं आएं ,
घीरे प्रलय की घोर घटाएं ,
पांव के नीचे अंगारे ,
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं , निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा।
अटल जी स्वयं एक सिद्धांतवादी पुरुष थे । उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। 31 मई 1996 को संसद में विश्वास मत के दौरान उन्होंने कहा था -” सरकारें आएंगी और जाएंगी मगर यह देश और उसका लोकतंत्र रहना चाहिए ।”
उनके द्वारा कहा गया यह वाक्य सदैव लोकतंत्र में गूंजता रहेगा ।अटल जी ने अपने सिद्धांतों के लिए अपनी सरकार की कुर्बानी कर दी
जिन लोगों ने आरएसएस की कार्य पद्धति नहीं देखे हैं वे आरएसएस पर अनावश्यक प्रलाप करते रहते हैं । एक बार अटल जी ने कहा था -” आरएसएस पर जिस तरह से आरोप लगाए गए उसकी जरूरत नहीं थी। आरएसएस के प्रति लोगों में आदर है , सम्मान है यदि वे दुखियों की बस्ती में जाकर काम करते हैं और आदिवासी इलाकों में शिक्षा का प्रसार करते हैं तो इसके लिए उनको पूरा सहयोग देना चाहिए। ”

जिस प्रकार से सरकार में जोड़ तोड़कर सरकारें बनाई जाती हैं उसके वे सख्त विरोधी थे । यही कारण है कि 1996 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अटल जी ने कहा था -” यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा ।” यही कारण है कि 1996 में अटल जी को सिर्फ 13 दिन ही सरकार चलाने का मौका मिला।

करिश्माई व्यक्तित्व के धनी अटल जी कवि हृदय अक्सर हुंकार भर देता था —
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी ,
अंतर की चीर व्याथा पलकों पर ठीठकी ,
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर, लिखता मिटाता हूं ,
गीत नया गाता हूं –गीत नया गाता हूं ।
उन्हें अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा 27 मार्च , 2015 को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया ।

अंत में हार नहीं मानने वाला जिंदगी से हार मान ही गया और 16 अगस्त , 2018 को जिस समय देश अभी आजादी का सातवां दशक जश्न मना ही रहा था कि वह हमें छोड़कर चले गए।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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