Ayodhya ka naya adhyay
Ayodhya ka naya adhyay

अयोध्या की पावन धरती पर, सरयू नदी के मधुर स्वर के साथ गुंजायमान श्री राम जन्मभूमि मंदिर की भव्यता आस्था का एक ऐसा महाकाव्य प्रस्तुत करती है, जिसके स्वर सदियों के इतिहास को बयां करते हैं।

भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में विख्यात, यह मंदिर केवल ईंटों और पत्थरों का समूह नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का दर्पण है, जहां इतिहास, संस्कृति और आस्था एक स्वर्णिम त्रयी में बंधे हुए हैं। राम मंदिर के भविष्य में उज्ज्वल प्रकाश नजर आता है।

आध्यात्मिकता, संस्कृति और पर्यटन का केंद्र बनता अयोध्या, आधुनिक तीर्थस्थल के रूप में विकसित होगा। यह मंदिर न केवल भारत के अतीत का गौरवशाली इतिहास समेटेगा, बल्कि एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण भी करेगा। यहां आधुनिक सुविधाओं के साथ पारंपरिक संस्कृति का संगम होगा।

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राममय हुई अयोध्या के नाम एक और अध्याय जुड़ने जा रहा है। सज रही अयोध्या सारी, अयोध्या में राम ही राम, बनेंगे बिगड़े काम। राम मंदिर की सौगात, श्रीराम का दिव्य दरबार। गूंज रही एक ही आवाज, लौट आया ‘राम राज्य’

अध्यात्म से समृद्ध राम नगरी अब सफलता का नया अध्याय लिखने जा रही है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले अयोध्या की तस्वीर के साथ-साथ तकदीर भी बदल गई है।

ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट में उत्तर प्रदेश को 40 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए। इसके साथ ही, आर्थिक रूप से अयोध्या भी विकास की नई सीढ़ी चढ़ी है।

उत्तर प्रदेश का पवित्र शहर अयोध्या, भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में अत्यधिक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसी कारण अयोध्या एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल भी बन गया है।

शहर की सांस्कृतिक पहचान इसके इतिहास और धार्मिक महत्व के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। ऐसे में हर भारतीय के लिए इसके बारे में जानना बेहद दिलचस्प साबित होगा।

अयोध्या एक नगरी नहीं, एक आस्था है। एक समर्पण है, एक विश्वास है। एक एहसास है, अयोध्या जहां के कण-कण में बसते हैं। प्रभु राम, अयोध्या, जहां की फिज़ाओं में गुंजता है। सनातन धर्म का शंखनाद, ये नगरी है, श्री राम की।

ये नगरी है, अखंड विश्वास की। 1990 से अबतक अयोध्या की चीत्कार थी, कि अयोध्या नगरी प्रभु राम की है। तब से लेकर अबतक राम जन्मभूमि आंदोलन हिंदू सभ्यता की जड़ों पर हुए विनाश और इसे पुनः प्राप्त करने की कठिन लड़ाई का एक मार्मिक प्रमाण है।

अयोध्या की प्राचीन उत्पत्ति के बारे में बात करें तो अयोध्या को पहले साकेत के नाम से जाना जाता था। इसकी एक समृद्ध विरासत है जो ईसा पूर्व पांचवीं या छठी शताब्दी की है।

सरयू नदी के तट पर स्थित, अयोध्या ने तीर्थयात्रियों, इतिहासकारों और पर्यटकों को सदैव अपनी ओर आकर्षित किया है जो यहां की पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक जड़ों से जुड़कर उन्हें रोमांचित करती है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयोध्या प्राचीन कोसल साम्राज्य की राजधानी और भगवान राम का जन्मस्थान था। राजा दशरथ द्वारा शासित इस शहर को एक समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण राज्य के रूप में वर्णित किया गया था।

इक्ष्वाकु, पृथु, मांधाता, हरिश्चंद्र, सगर, भगीरथ, रघु, दिलीप, दशरथ और राम उन प्रसिद्ध शासकों में से थे जिन्होंने कौशल (कोसल) देश की राजधानी पर शासन किया था। अयोध्या की संस्कृति एवं विरासत अतीत में सूर्यवंशियों के साम्राज्य से उत्पन्न हुई है।

सूर्यवंशी क्षत्रियों के वंश में राजा रघु एक तेजस्वी चरित्र थे जिनके नाम पर सूर्यवंश रघुवंश के नाम से लोकप्रिय हुआ। राजा रघु की तीसरी पीढ़ी में श्री राम का जन्म हुआ, जिनकी छवि आज भी सभी हिंदुओं के हृदय में भगवान के रूप में विद्यमान है।

रामायण का काल संभवतः प्राचीन भारत के इतिहास का सबसे गौरवशाली काल था। दरअसल, इसी युग में न केवल सबसे पवित्र धर्म ग्रंथों, वेदों और अन्य पवित्र साहित्य की रचना हुई, जिन्होंने भारतीय संस्कृति और सभ्यता की नींव रखी, बल्कि यह युग कानून और सच्चाई के शासन में भी अनुकरणीय था।

राज्य और समाज की प्रतिष्ठा से जुड़े मामलों में राजा अपनी प्रजा के प्रति जवाबदेह था। तथ्यों की सत्यता तीन सहस्राब्दियों से अधिक के बाद भी महाकाव्य में निहित है।

भगवान राम रामायण के ‘आदर्श पुरुष’ थे। उनके चौदह वर्ष के वनवास ने मानव मन को उनके जीवन के अन्य अवधियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया क्योंकि उन्होंने केवल अपने पिता के वचन का सम्मान बनाए रखने के लिए, अपनी उचित विरासत को त्यागकर जंगल में घूमना शुरू कर दिया था।

इसके अलावा भारतीय इतिहास में भी अयोध्या का विशेष स्थान रहा है। अतः धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी अयोध्या को प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त हुआ है।

अयोध्या के इसी ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने यहां आने वाले पर्यटकों और निवासियों की सहुलियत के लिए धर्मनगरी के कायाकल्प का जिम्मा संभाला है। अयोध्या का नाम सुनते ही मन रामायण के पन्नों में खो जाता है।

यही वह पवित्र भूमि है जहां भगवान राम का जन्म हुआ, उनके जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंग घटित हुए। सदियों से, अयोध्या तीर्थयात्रियों और विद्वानों की आस्था का केंद्र रहा है, जहां मंदिरों और आश्रमों से ज्ञान और आध्यात्मिकता का प्रकाश बिखरता है।

मुगल काल का एक अध्याय अयोध्या के इतिहास में खून के धब्बे छोड़ गया। राम जन्मभूमि पर मस्जिद का निर्माण, विवादों का बीज बो गया। 1992 में हुए तनावपूर्ण घटनाक्रमों के बाद, यह विवाद सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंचा।

2019 में आया ऐतिहासिक फैसला, जिसने न्याय की तराजू को सीधा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि को राम जन्मभूमि न्यास को सौंपने का आदेश दिया, तभी मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। राम मंदिर, केवल हिंदुओं की आस्था का ही केंद्र नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।

भगवान राम, आदर्शों और नैतिकता के मूर्तिमंत स्वरूप हैं, जिनके गुण भारतीय संस्कृति की जीवनदायिनी नदियों की तरह पूरे देश में बहते हैं। लाखों श्रद्धालुओं के लिए राम मंदिर, जीवन, धर्म, कर्म और सत्य के सरोवर में डूबकर पवित्र होने का साधन है।

यहां आकर वे राम के आदर्शों को जीते हैं, उनके गुणों को आत्मसात करते हैं और जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने का बल पाते हैं। भव्य राम मंदिर का निर्माण, इतिहास का पुनर्लेखन है। यह केवल मंदिर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राष्ट्रीय एकता का स्वर्णिम अध्याय है।

मंदिर निर्माण से रोजगार के अवसर तो मिलेंगे ही, साथ ही अयोध्या एक वैश्विक तीर्थस्थल के रूप में भी स्थापित होगा। यह मंदिर, सामाजिक सद्भावना और धार्मिक सहिष्णुता का प्रेरक मंत्र भी है।

यह दिखाएगा कि शांतिपूर्ण तरीके से विवादों को सुलझाया जा सकता है, और विभिन्न समुदाय मिलकर राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकते हैं। यहां सभी धर्मों के लोग शांति से आ सकते हैं, प्रार्थना कर सकते हैं और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।

राम मंदिर के भविष्य में उज्ज्वल प्रकाश नजर आता है। आध्यात्मिकता, संस्कृति और पर्यटन का केंद्र बनता अयोध्या, आधुनिक तीर्थस्थल के रूप में विकसित होगा। यह मंदिर न केवल भारत के अतीत का गौरवशाली इतिहास समेटेगा, बल्कि एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण भी करेगा। यहां आधुनिक सुविधाओं के साथ पारंपरिक संस्कृति का संगम होगा।

प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

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