संपादकीय बाल विश्व
“हमारी ही मुट्ठी में आकाश सारा।
जब भी खुलेगी चमकेगा तारा।।”
इन नन्हें- मुन्ने देश के कर्णधारों की मुट्ठी में तारों सी चमकीली ख्वाहिशें बंद है और उन सपनों को उड़ान देने के लिए हम सबके साथ, मार्गदर्शन, सहयोग, स्नेह, अपनत्व की आवश्यकता है।
इस अनगढ़ मिट्टी को संस्कारों से गढ़ना है और इस तरह पल्लवित और पुष्पित करना है कि जब उड़ानें भरें ,तो अपनी जड़ों से भी जुड़े रहें। पंखों को इस तरह मजबूती देनी है कि अनुकूल- प्रतिकूल परिस्थितियों में साम्य रहे ।धैर्य ,
विवेक का दामन और आत्मिक शक्ति का सतत साथ रहे।
एक बेहतर व्यक्तित्व के सृजन में मजबूत शरीर की प्राचीर और संवेदन शीलता से धड़कता दिल अपरिहार्य है।
किशोर जिज्ञासु आंँखों की खोज, अनंत कल्पनाशीलता और व्योम छू लेने के स्वप्न तथा उन्हें हासिल कर हेतु हौसलों और ऊर्जा से निरंतर गतिमान होने की अद्भुत क्षमता इन बच्चों से सीखना तो, हम बड़ों को भी है ।
हम बड़े जो एक समय तक बढ़ने के बाद विराम पा लेते हैं और अपनी कल्पना शक्ति और सपनों को भी विश्राम दे देते हैं और जहांँ के तहांँ खड़े रह जाते हैं जैसे रुका हुआ पानी शक्तिहीन,स्वप्नविहीन ,गतिहीन, थकन से चूर निराश और बोझिल।
“बड़ा- बड़ा दिमाग
बड़ी -बड़ी गणनाएंँ करते हुए
यूंँ अक्सर खड़ा रहता है
खुशियों की तरफ पीठकर
और वक्त के पायदान पर
बहती हर एक छोटी लहर
छोड़ जाती है खुशियों के
अनमोल मोती नन्हें हाथों पर ।”
इन्हीं मासूम सपनों की उन्मुक्त उड़ान ,बाल मनोविज्ञान ,उमंगों का उफान और उनके विविध रंगी सुंदर जहान को निर्बाध मुक्त छंद में सजाया है”बाल विश्व” के इक्कीस रचनाकारों ने। भाव प्रवणता और सहजता जो बाल हृदय को स्पर्श कर सके, आंदोलित कर दे, पढ़ने की जिज्ञासा जगा दे, मानसिक संतुष्टि प्रदान करें और सबसे बड़ी बात नन्हें बच्चों को जो, अपनी ही लग सके, जिसे वो आत्मसात कर सकें, जिसके साथ वे जी सकें।
इस उद्देश्य को उद्दीप्त करते हुए, बाल मन से सीधा संवाद स्थापित करने की कोशिश की गई है यथार्थ परक, ज्ञानवर्धक और रोचक शैली द्वारा । यूंँ तो आजकल के बच्चे जन्म लेते ही गेजेट्स के साथ मित्रता कर लेते हैं और तकनीक में बहुत विद्वता हासिल कर लेते हैं।
इनका आवश्यकता से अधिक उपयोग कहीं न कहीं उन्हें आत्म केंद्रित और समाज , परिजनों से परे भी कर रहा है। “अति सर्वत्र वर्जयेत” अधिक उपयोग नकारात्मकता ,अवसाद, कुंठा निराशा और अकेलापन भी प्रदान करता है जो उनके स्वस्थ मनोमस्तिष्क और सर्वांगीण विकास के लिए लाभदायक नहीं। स्क्रीन फिलिक होने की जगह प्रकृति प्रेमी बनना सुखदायक, स्वास्थ्यवर्धक है।
पढ़ाई लिखाई पर फोकस करने के साथ-साथ, खेलकूद , पौष्टिक उत्तम आहार, मित्रों एवं परिवारजनों से संवाद, व्यक्तित्व विकास हेतु आवश्यक है। समय और ऊर्जा का संतुलन आवश्यक है । बहुत कुछ है सीखने- समझने के लिए लेकिन विवेक ,सम्यक ज्ञान और संतुलन के साथ ही सही सामग्री का और रास्तों का चयन आवश्यक है। सोशल मीडिया और गेजेट्स का प्रयोग सीमित मात्रा में ,सार्थक उद्देश्य हेतु उपयोग ही लाभप्रद होगा ।
अपने पर्यावरण,वैज्ञानिकता,कल्पना के साथ व्यावहारिकता भी, अपने आसपास के सामाजिक परिदृश्य, परिजनों, बुजुर्गों ,अनुशासन, निष्ठा, संस्कृति और सभ्यता के प्रति सजगता व निष्ठा ,राष्ट्रप्रेम, प्रकृति प्रेम और अन्य नैतिक गुणों को शामिल किया गया बालकों को संवेदनशील बनाने हेतु।
इस संकलन में दो प्रतिभावान, सुकमार लेखनी भी शामिल हैं, जिन्होंने अपने मनोभावों को, अपनी कलम से जिस भी रुप में उतारा है, वह उनकी अपनी बेहद सहज,मौलिक ,निर्बाध सृजन क्षमता और सृष्टि को देखने की दृष्टि है।
स्वयं को बाल काया में प्रवेश कराकर , सुकुमार ह्रदय के निश्छल, पवित्र मनोभावों के साथ-साथ उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति, नटखट और खिलंदड़पन को संप्रेषित किया है , सही राह चुनने और जीवन मूल्यों पर कायम रहने की सीख मिलती है रचनाओं में।
बाल संसार जीवन का स्वर्णिम काल, और उसकी लीलाएंँ मनमोहक, अद्भुत हैं।
सभी प्रमुख साहित्यकारों महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, श्रीकृष्ण सरल, हरिवंश राय बच्चन, सुभद्रा कुमारी चौहान, हरिऔध, बालस्वरूप राही, जयशंकर प्रसाद ने बाल साहित्यरच कर बालपौध के प्रति अपना फर्ज पूर्ण किया है। उनके गतिमान मन को शब्दों के माध्यम से सार्थकता,दिशा प्रदान की है।
वहीं भाव संप्रेषणीयता की दृष्टि से इन मुक्त छंद काव्य रचनाओं में अमिधा और लक्षणा के लक्षण और आल्हादित करता माधुर्य गुण, ओज के साथ स्वत स्फूर्त: प्रभावोत्पादक है । हां ! कोई छंदस शास्त्रीयता आबद्ध नहीं।
बालमन रंजन वर्ण्य विषय अवश्य ही है।
सुपरिचित बाल साहित्यकार डॉ. परशुराम शुक्ल जो अपने पूर्ण मनोयोग से इस छंद मुक्त बाल काव्य के नवाचार में शामिल हैं उनका यह कहना समीचीन और उपयुक्त प्रतीत होता है कि ;-” मुक्त छंद कविता लयात्मकता ,रसात्मकता से पूर्ण होती है, साथ ही उसकी बेबाकी और गहनता ही उसे पूर्ण कविता बना देती है।”
मानसिक संशोधन ,साहित्यिक गतिविधियों और सामाजिक सरोकार हेतु संकल्पित “आरंभ चैरिटेबल फाउंडेशन” के तत्वावधान में कोरोनाकाल के दुरुह और चुनौतीपूर्ण समय में रचनात्मकता को प्रश्रय देने वाला बालकों को समर्पित यह महत्वाकांँक्षी नवाचार युक्त साझा संकलन है जिसमें 21 रचनाकारों की सार्थक सहभागिता है। 2021 में ही “आरंभ उद्घोष 21वीं सदी का” प्रथम साझा काव्य संकलन प्रकाशित हुआ, जिसमें देश-विदेश के 51 रचनाकारों ने उत्कृष्ट काव्य रचनाओं के साथ सहभागिता की।
इस प्रथम साझा संकलन को साहित्य जगत में साहित्यकारों और पाठकों के मध्य बेहतर प्रतिसाद मिला और आरंभ को आत्म संतुष्टि। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में बेहतर समीक्षात्मक टिप्पणियांँ प्रकाशित हुईं।” बाल विश्व” दूसरे साझा काव्य संकलन को भी साहित्य जगत, साहित्यकारों, पाठकों एवं बालकों के मध्य इसी तरह का प्रतिसाद और आशीर्वाद मिले, यही कामना है ।
अधिकाधिक बालकों के मध्य यह संकलन पहुंचे, इस हेतु सभी यथा योग्य अपने प्रयासों से, हमारे उद्देश्य को सफल कर सकते हैं।
इस मुक्त छंदयुक्त बाल काव्य संकलन सृजन के नवाचार में सभी शामिल रचनाकारों को स्नेहिल, अशेष शुभकामनाएंँ।।
“बच्चों को दिखलाइए ,धरा और आकाश।
भर देंगे यह विश्व में पावन दिव्य प्रकाश”-डॉ परशुराम शुक्ल
हमारी नई पौध, श्रेष्ठ गुणों से युक्त, सकारात्मक ऊर्जा और जीवन मूल्यों से ओतप्रोत, विवेकवान चिरंजीवी हों,अपने जीवन के साम्राज्य के सम्राट बनें, इन्हीं सहृदय स्नेहिल शुभकामनाओं के साथ।
अपनी ही
अनुपमा अनुश्री
बहुत ही बढ़िया रचना सामग्री