बैगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

बैगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

ये उन दिनों की बात है जब बचपन विदाई ले रहा था और तरुणाई अंगड़ाई लेने लगी थी.. जवानी सामने खड़ी थी और मैं उसे लपक कर ले लेने को उतावला सा हो रहा था।

एक दिन यू ही किसी से खबर सुनी की फ़िल्म इंड्रस्टी का दिग्गज घराना कपूर परिवार के किसी सदस्य की शादी अकोला में होने वाली है.. यह सुन मैं खुशी से बावरा हो गया।

बावरा होने की यह कतई वजह नही थी कि मुझे कोई उन के ब्याह का निमंत्रण पत्र मिला हो.. बावरा तो इसलिए हो रहा था कि शादी में फिल्मी लोग भी आएंगे.. ओर फिल्मी लोगो से मिलने का जुनून तो मुझ पर न जाने कब से था।

मैंने संजू (मेरे परम प्रिय बचपन के मित्र स्व. संजय भाला का अभी एक वर्ष पूर्व ही निधन हो गया ) को बताया कि शादी में चलेंगे तो एक बारगी वो सकपका गया.. जान न पहचान फिर भला कैसे जाएंगे शादी में वो बोला.. मैने कहा तू चिंता मत कर।

मैं हु न.. एक बात का गर्व तो मुझे स्वयं पर हमेशा रहेंगा की कही पर भी कोई बात हो ओर मैने कह दिया कि कोई बात नही.. मैं हु न.. तो लोग निच्छिन्त हो जाते हैं और उस कार्य की पूरी जवाबदारी मुझे सौंप देते हैं ।

संजू भी चिंता मुक्त हो गया.. बोला अब कुछ कम ज्यादा हुआ तो घरवालों को तेरा नाम बताऊंगा की रमेश जबरदस्ती ले गया.. मैं भी खूब मस्ती में था.. शान से बोला.. जा बोल देना मेरा नाम।

उस रात को मुझे नींद जल्द नही आयी.. अगले दिन बारात को आना था सो मैं कल्पना करने लगा कि ऋषि कपूर आएंगे या शशिकपूर.. साथ में नितुसींग आये तो उन से भी दो शब्द बोल लेंगे.. और राजकपूर शम्मी कपूर तो अब बूढ़े हो गए हैं शायद न ही आये.. मुझे शशि जी और ऋषि जी से मिलने की बहुत तम्मना था।

मैं भगवान से मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि ये दोनों तो पक्का आये.. फिर मन मे विचार आया कि इतनी बड़ी शादी हैं तो अमिताभ जी भी तो आ सकते हैं.. अगर अमित जी आते हैं तो फिर मिथुन दा.. दीपक पाराशर.. सुनील दत्त जी.. फिरोज खान भी तो आएंगे.. फ़िल्म इंड्रस्टी के लगभग सभी कलाकारों के आने की संभावना मैने अपने मन मे बना ली ।

रात भर कल्पनाओं के जाल को बुनता रहा.. सुबह का इंतजार करता रहा.. सिनेमा किस कदर मुझ पर हावी है यह इस प्रसंग से समझा जा सकता है.. सिनेमा तो भारतीय संस्कृति का वो पहलू जिसे नकार कर भी लोग दिलो में पालते हैं.. मगर मैं सच को स्वीकार करता हु.. अपने सिनेमा प्रेम को जाहिर करता हु.. अभी नही.. पहले से।

दूसरे दिन मैं ओर संजू सज धज कर गांधी रोड पर खड़े हो गए.. हमे सर्फ इतनी सूचना मिली थी कि बारात गांधी रोड से हो कर गुजरेंगी.. हमे तो यह भी नही पता कि किस की बारात है और किस के यहाँ आ रही है।

सिर्फ कपूर परिवार का नाम जुड़ना ही हमारी चरम उत्सुकता मुख्य कारण था.. करीब घण्टा भर होते आया मगर कोई बारात नही आयी.. मगर हम फिर भी डटे रहे.. करीब तीन घण्टे बाद हमे बैंड बाजो की आवाज सुनायी पड़ी.. हम दोनों तेजी से उस दिशा की ओर आगे बढ़े.. पास पहुँचे तो देखा बहुत से ऊँचे पूरे लोग झूम बराबर झूम शराबी गीत पर नाच रहे थै।

साथ लडकिया भी पेंट पहने हुए नाच रही थी.. कुछ लोगो ने बियर की बोतले खोल रखी थी और सड़क पर चुस्कियां ले रहे थे.. लडकिया भी उन के हाथ से बोतल ले कर गुंट भर रही थी।

ये देख मैं संजू से बोला ये पक्की फिल्मी दुनिया की शादी है.. पक्की इसलिये की मैने कभी आम शादियों में शराब की बोतलें नही देखी.. कभी बेलबॉटम पहनी लड़कियों को सड़क पर नाचते नाचते शराब पीते नही देखा.. ये सब यहां देख कर मैं खुश हो गया.. ऐसे नजारे भला हमारे छोटे से शहर में कहा देखने को मिलते हैं ?

हम दोनों ने पूरी बारात के चारो ओर चक्कर लगा लिए.. उम्मीद थी कि कपूर परिवार का कोई न कोई सदस्य दिखाई पड़ेंगा मगर अफसोस कि कोई भी नही दिखा.. हमे हमारा कोई परिचित भी उस मे दिखाई नही दिया.. फिर मन मे उम्मीद बंधी की इतने बड़े लोग क्या सड़क पर पैदल चलेंगे.. वे तो ब्याह के मंडप में बैठे होंगे।

मैं संजू को बोला चल इन के साथ हम भी नाचते हैं ओर जहां शादी हो रही है वहा चलते हैं.. वो डर गया कि शादी में भी जाएंगे.. बोला तू नाच ओर तू जा.. मैं नही आता.. मैने उसे मित्रता वाली चार गालियां बकी.. ओर धमकाया की कोई बात नही बेटा.. कभी तेरा भी समय आयेंगा तब बताऊंगा।

वो मन मार कर रुकने को तैयार हो गया.. संगीत इतना प्यार बज रहा था कि पैरों को रोकना बडा मुश्किल हो रहा था.. मैं भी कूद पड़ा उन लम्बे चौड़े लोगो के बीच.. वे लोग तो बाहर के थे सो उन्हें लगा मैं इधर से हु सो कोई कुछ नही बोला।

वैसे कोई कुछ बोल भी नही सकता था क्यो की जवानी की शुरुआत भले ही हो रही थी मगर मासूमियत अभी भी कायम थी.. नाचना तो मुझे आता नही था.. बस यूं ही इधर उधर हाथ पैर फैकने लगा.. बारात आगे बढ़ती जा रही थी.. कुछ देर बाद एक लड़की मेरा हाथ पकड़ कर नाचने लगी.. मैं भी उसकी नकल करने लगा.. लड़की के साथ नाचते देख संजू मुझे ईर्ष्या से देखने लगा.. मैने इशारा किया कि आ तू भी आजा मगर वो नही आया।

बारात जब गन्तव्य पर पहुँची तो एक बारगी मेरी भी हिम्मत जवाब दे गई कि कैसे किसी के यहाँ जबरन घुसे मगर फिल्मी कलाकारों से मिलने की चाहत इतनी थी कि यह बेजा काम भी कर गया.. अंदर भी मुझे कोई कलाकार नजर नही आया.. पूरे मंडप के चक्कर लगा आये मगर एक भी मेरा हीरो नजर नही आया.. मेरा मन बैठने लगा।

इतने दिनों की आस टूटने लगी.. घर पर फजीती होंगी सो अलग.. बड़े बड़े दावे जो कर दिए थे कि फलाने हीरो से मिलेंगे.. फलानी हिरोइन आ रही है मगर यहा कोई नही.. जब कोई नही दिखा तो मैं चलने को तैयार हुआ तो संजू बोला खा कर ही निकलते हैं।

भूख तो मुझे भी लग आयी थी मगर खाने का यहाँ इरादा नही था.. लोगो ने भोजन शुरू कर दिया था मगर मैं पेशोपेश में था.. फिर सोचा कि सर दिया ओखली में चोट से क्या डरना.. बहुत से नए नए व्यजंन भी वहाँ दिखाई दे रहे थे.. हम दोनों ने प्लेट सजा ली.. बाहर आ कर संजू मुझ पर सवार हो गया.. बोलने लगा कि जब मालूम ही नही की किस की शादी है तो क्यो ले गया.. मैने कहा अगर सच मे अमिताभ बच्चन और शशिकपूर मिल जाते तो ?

आज सालो बीत गए इस बात को मगर जेहन में सब कुछ साफ साफ है.. एक एक पल याद है.. किसी अजनबी के यहां घुस जाने का वो डर का अहसास आज भी ताजा है.. ओर उस नव युवती का मेरे हाथों को अपने हाथ में लेने के वे क्षण.. उस के हाथों गर्मी.. उस के मात्र छू जाने से दिल मे उठी अजीब से मीठी मीठी गुदगुदी ।

कुछ भी नही भुला हु मैं.. कुछ भी नही.. आज तक मैं यह भी नही जान पाया कि वो किस की शादी थी जिस में मैं नाच आया.. खा आया.. न जाने वे कौन लोग थे जो सड़क पर खूब मस्ती बिखेर रहे थे.. न जाने वे कौन लडकिया थी जिन्हें अकोला के लोग बड़ी ही हसरतो से देख रहे थे.. ओर वो लड़की अभी कहा होंगी जिस ने की मेरा हाथ पकड़ा था।

बरसो बीत गए हैं मगर उस की सूरत मेरे मन मे उसी ताजगी को लिए बसी है जो कि उस दिन थी.. अब तो वो अधेड़ हो गयी होंगी.. उस के नाती पोते हो गए होंगे.. घर पर बताया तो सब हँसने लगे.. माँ लगातार कटाक्ष कर रही थी।

अमिताबच्चा को देख आया.. अमिताबच्चा को मिल आया.. माँ को अमिताभ बच्चन बोलने में असुविधा होती थी न सो वो अमिताबच्चा बोलती थी.. बहुत देर तक मैं सोया नही तो बाबूजी बोले अरे अब्दुल्ला अब सो भी जा.. मैं उन का आशय समझ गया।

सच ही तो कह रहे थे वे.. मैं ही तो बन गया था बैगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना.. बाबूजी के मुँह से अपने लिए अब्दुल्ला नाम सुनकर मुझे हँसी आ गयी.. आज संजू होता तो हम इस किस्से को फिर याद करते।

मैं उसे उस लड़की की याद दिला कर जलाता था.. मगर अब संजू रहा कहा.. वो सचमुच जल गया.. राख बन गया.. इस मिट्टी में समा गया.. न जाने किस नदी में राख बन कर बह गया.. अनेक अनेक धन्यवाद।


रमेश तोरावत जैन
अकोला

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One Comment

  1. मेरी रचना बैगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना प्रकाशित करने के लिए अनेक अनेक धन्यवाद.. रमेश तोरावत जैन, अकोला
    मोब 9028371436

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